मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़ा बताकर राफेल मामले में लगे आरोपों को दरकिनार करने की कोशिश की. इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी अपने पिछड़ा होने का ढिंढोरा पिट चुके हैं
दिनेश कबीर
भारतीय राजनीति में आमतौर पर जाति की राजनीति करने का आरोप क्षेत्रीय दलों पर लगाया जाता है. जबकि ‘जाति’ की राजनीति करने में भारत के दो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस किसी से पीछे नहीं हैं. भाजपा साम्प्रदायिक राजनीति के लिए कुख्यात रही है. लेकिन इसका मतलब यह कतई न समझा जाए कि भाजपा जाति की राजनीति नहीं करती रही है. भाजपा अपने शुरूआती समय से सवर्ण जातियों को तुष्ट करने की नीतियां बनाती रही है तथा पूरी तत्परता से उस पर काम भी करती रही है. सवर्ण आरक्षण इसका ज्वलंत उदाहरण है. इसके साथ ही भाजपा सवर्ण तथा गैर सवर्ण जातियों के ‘जातिविशेष’ सम्मलेन और सभा बुलाती रही है. आज भी यह सिलसिला जारी है. उन जाति सभाओं, सम्मेलनों में जाति विशेष के प्रति केवल दिखावे के लिए तुष्टिकरण की नीति अपनाती है. अभी हाल में ही भाजपा के नेता नरेश अग्रवाल का विडियो वायरल हुआ जिसमें वे एक `पासी` जाति के सम्मलेन में फ़ूड पैकेट्स के अंदर शराब बंटवाते हुए देखे गए.
1980 के बाद कई प्रदेशों में जब क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ जिन्होंने सामाजिक न्याय के अवधारणा को लेकर प्रतिनिधित्व की मांग तेज की, तब एक बड़ा वोट बैंक उनकी तरफ शिफ्ट करने लगा. बीसवीं सदी के अंतिम दशक में ये दल सत्ता पर काबिज भी होने लगे. इनके वोटर्स मुख्यतः गैर सवर्ण जातियों के होते थे. इन क्षेत्रीय दलों का सामाजिक न्याय को मुख्य मुद्दा बताना और जातिगत भेदभाव को एड्रेस किये जाने के कारण उनकी राजनीति को जातिवादी राजनीति के रूप में प्रचारित किया गया. यही कारण है कि राजनीति की चव्वनी भर समझ न रखने वाला व्यक्ति इन क्षेत्रीय दलों पर ‘कास्ट पॉलिटिक्स’ का लेबल लगाकर चलते बनता है. जब उत्तर प्रदेश और बिहार में गैर सवर्ण जातियां सोशल जस्टिस की वकालत करने वाली पार्टियों की सरकार लगातार बनाने लगी, तब उनके बीच फूट डालने के उपक्रम किये जाने लगे. भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार में एक तरफ यादव और गैर यादवों को खड़ा करने का प्रयास किया गया. दूसरी तरफ जाटव वर्सेस गैर जाटव का नेरेटिव गढ़ा गया। आपको अगर उत्तर प्रदेश के 2017 का विधान सभा चुनाव याद हो तो इस बात को आसानी समझ सकते हैं. इस चुनाव में भाजपा ने यादव और जाटव के प्रति दुष्प्रचार करके अन्य जातियों के वोट का धुर्वीकरण कर लिया. परिणामतः उतर प्रदेश में लंबे समय के बाद भाजपा की सरकार बनने में सफलता मिली.
मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़ा बताकर राफेल मामले में लगे आरोपों को दरकिनार करने की कोशिश की. इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी अपने पिछड़ा होने का ढिंढोरा पिट चुके हैं. जिसका सीधा फायदा उन्हें 2014 के लोक सभा चुनाव में मिला। गौरतलब है कि नरेन्द्र मोदी जिस जाति से आते हैं वह पहले अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल नहीं थी. नरेन्द्र मोदी ने अपने मुख्मंत्रित्व काल में अपनी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करवाया. अब उसका राजनीतिक लाभ ले रहे है. इस लोक सभा चुनाव में गुजरात के एक सभा में नरेंद्र मोदी ने यहां तक कह दिया कि मैं तेली समाज से हूँ, मुझे वोट देकर विजयी बनाइये.
भाजपा का कोर वोट-बैंक सवर्ण जातियां हैं. भाजपा का मंत्री मंडल सवर्ण जातियों से भरा पड़ा है। वर्तमान केंद्र की सरकार में 80% से अधिक कैबिनेट मंत्री एक ही जाति के हैं. अपने शासन काल में भाजपा ने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर सवर्ण जाति के लोगों की नियुक्ति की है जो कि जातिवादी मानसिकता और राजनीति का ही प्रतिफलन है.
(लेखक दिल्ली विश्विद्यालय में शोधार्थी और फ्रीलान्स लेखक है)