ग्राउंड रिपोर्टः बेगूसराय शहर में युवा दलित दुविधा!

    एक बात तय है कि युवाओं में भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ खासा गुस्सा है. दलितों-आदिवासियों के भारत बंद ने दलित युवकों को बहुत गहराई के साथ प्रभावित किया है

    सरोज कुमार

    बेगूसराय रेलवे स्टेशन से करीब डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित है पोखरिया नामक जगह. बेगूसराय की कचहरी और कुछ महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय इसके पास ही हैं. जाहिर है, यह बेगूसराय शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. पोखरिया बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करीब दो दशक बाद जीत दर्ज की थी. यहां कांग्रेस की अमिता भूषण ने भाजपा उम्मीदवार को करीब 19,000 वोट से हराया था.

    पोखरिया में दलित (पासवान) और मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है. यहां एक मोहल्ला है जिसको पासवान (दलित) मोहल्ले के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल इस मोहल्ले के एक युवा के मुताबिक, इसमें करीब दो हजार पासवान समुदाय के लोग रहते हैं. मैं 27 अप्रैल को यहां जिस घर में गया उसकी छत पर बने एक सिंगल कमरे में डॉ. भीमराव आंबेडकर और गौतम बुद्ध की दो बड़ी तस्वीरें टंगी हुई थी. हालांकि उनके साथ-साथ हिंदू देवी-देवता शंकर और पार्वती की तस्वीर भी थी लेकिन उनकी तस्वीर उनके सामने छोटी और फीकी पड़ गई थी.

    बेगूसराय में बुद्धा और आंबेडकर
    बेगूसराय में बुद्धा और आंबेडकर (फोटो: सरोज कुमार)

    इसी मोहल्ले में रहने वाले 28 वर्षीय दिनेश कुमार पासवान ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पढ़ाई की है और वह अभी मतदान के लिए घर पर है. बेगूसराय में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है और इस मोहल्ले में युवाओं के अड्डों पर भी चुनावी चर्चा होनी ही थी. ऐसे ही एक अड्डे पर दिनेश अपने दोस्तों के साथ जमा थे. आखिर उनके दिमाग में चुनाव को लेकर क्या चल रहा है? पूछने पर दिनेश कहते हैं, “यहां हम लोगों में सीपीआई के कन्हैया कुमार के बारे में चर्चा चल रही है. वे युवा हैं तो युवाओं में उनके प्रति रुझान है.” दिनेश का कहना है कि 26 अप्रैल की मोबाइल लाइट जुलूस में भी यहां काफी भीड़ उमड़ी थी. तो क्या यह रुझान वोटों में तब्दील हो पाएगी और कन्हैया कुमार को जीत दिला पाएगी? हालांकि इसको लेकर दिनेश और उनके साथियों में थोड़ा संदेह है. दिनेश बताते हैं, “वैसे देखें तो यह इतना आसान नहीं है क्योंकि तनवीर हसन भी बहुत मजबूत उम्मीदवार हैं. वे मोदी लहर में भी पौने चार लाख वोट लेकर आए थे. ऐसे में कन्हैया की जीत के लिए जरूरी है कि मुसलमान वोट काफी ज्यादा उनकी ओर मुड़े. वरना उन्हें मुश्किल हो सकती है.” हालांकि उनका मानना है कि कन्हैया को युवा मुसलमानों में भी समर्थन देखा जा रहा है. कन्हैया के प्रति इन युवा का रूझान उनकी पार्टी से इतर है. मसलन लीडरशिप में दलित और मुसलमानों के न होने और अन्य वजहों से सीपीआइ को न पसंद करने वाले भी कन्हैया को लेकर रूझान दिखा रहे हैं. इन दलित युवाओं में कन्हैया को लेकर यह भी दुविधा है कि अगर वे जीतते हैं तो दलितों के लिए के लिए कुछ करेंगे या नहीं. दरसल इनके मुताबिक ये बार-बार ठगे गए हैं.

    दूसरी ओर इसी मोहल्ला के एक युवक रौनक कुमार पासवान, जो जूनियर इंजिनियर है, तनवीर हसन और राजद के प्रति अपना समर्थन जताते हैं. रौनक बताते हैं, “राजद नेता तेजस्वी यादव जिस तरह से आरक्षण के मुद्दे को उठा रहे हैं, वह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. सच पूछिए तो यह लड़ाई हमारी आरक्षण विरोधियों से है. इसलिए हम यहां राजद को सपोर्ट कर रहे हैं”. दिनेश और रौनक दोनों का मानना है कि अगर वोटबैंक के आधार को देखें तो भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह और राजद के तनवीर हसन के पास कन्हैया से ज्यादा मजबूत और समर्पित वोट बैंक हैं. लेकिन उनके मुताबिक, कन्हैया अगर युवाओं में लोकप्रियता और अगर ‘फ्लोटिंग वोट’ को अपने पक्ष में भुना लेते हैं, तो आगे निकल सकते हैं.

    इसी मोहल्ला के युवक सूरज आशीष, जो पासवान जाति से आते है, ऑटो चलाते हैं. उनके पिता सीपीआइ के कार्ड होल्डर हैं लेकिन हैरानी की बात है कि सूरज ने 2014 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा को वोट दिया था. सूरज बताते हैं, “नरेंद्र मोदी ने हम में एक उम्मीद जगाई थी. हमें लगा था कि वे हमें रोजगार मुहैया करेंगे और देश के हालात सुधरेंगे.” लेकिन सूरज के मुताबिक, उनकी उम्मीदें चकनाचूर हो गईं. वहीं उम्मीद उन्हें इस बार कन्हैया कुमार में नजर आ रही है. सूरज कहते हैं, “इस बार मैं कन्हैया को वोट देने की सोच रहा हूं.” दरअसल, वे बताते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान की एनडीए में रहने की वजह से यहां पासवान समुदाय के एक तबके ने भाजपा को वोट दिया था.

    हालांकि इस बार हालात बदल गए हैं और एक बात तय है कि इन सभी में भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ खासा गुस्सा है. यह भी गौर करने वाले बात है कि एनडीए में शामिल रामविलास पासवान के समुदाय से आने के बावजूद ये युवक उन्हें सपोर्ट करते नजर नहीं आते. दिनेश की नाराजगी उनके चेहरे से झलक पड़ती है, “उन्होंने हमारे लिए किया ही क्या है? मोदी सरकार में दलित-उत्पीड़न और एससी-एसटी ऐक्ट पर आंदोलन के दौरान उनका रवैया हमारे लिए सही नहीं था.” जाहिर है, पिछले साल एससी-एसटी ऐक्ट के मसले पर दलितों-आदिवासियों के भारत बंद ने दलित युवकों को बहुत गहराई के साथ प्रभावित किया है. और उसका असर अब तक दिखाई पड़ रहा है, जिसके वजह से इन युवाओं में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी है.

    इसी मोहल्ले के 22 वर्षीय कृष्ण कुमार कह पड़ते हैं, “दरअसल हमें इस बार भाजपा को हराना है.” यही वह लाइन है जिस पर ये सभी युवक चल रहे हैं, यानि कि चाहे कन्हैया कुमार जीतें या तनवीर हसन, लेकिन वे भाजपा को हारते देखना चाहते हैं. हालांकि उन्हें यह भी डर है कि कन्हैया और तनवीर की आपसी चुनावी जंग में भाजपा के गिरिराज सिंह न आगे निकल जाएं. दिनेश बताते हैं, “भाजपा को हराने के लिए एक तरफ तो कन्हैया मजबूत दिख रहे हैं क्योंकि उनके प्रति रुझान है युवाओं में. तो दूसरी तरफ यह भी लग रहा है कि तनवीर हसन के पास भी उनका मजबूत समर्थन आधार है.” 26 अप्रैल की शाम को, जब मतदान के लिए महज एक दिन और बाकी था, इन युवकों में यह दुविधा थी. वे भाजपा को हराना चाहते हैं, लेकिन कन्हैया के प्रति रुझान के बावजूद वे कश्मकश में थे कि कहीं तनवीर और कन्हैया के बंटवारे में गिरिराज सिंह न निकल जाएं. जाहिर है, अगले कुछ घंटे उनके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं.

    नोटः पहचान गुप्त रखने के लिए लोगों के नाम बदल दिए गए हैं. यह रिपोर्ट बेगूसराय शहर के एक पासवान मोहल्ले की है, इसलिए इस पूरे बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र का चुनावी मिजाज नहीं माना जाना चाहिए.

    (सरोज कुमार फ्रीलांस पत्रकार हैं तथा फिलहाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया से दलित और न्यू मीडिया पर रिसर्च कर रहे हैं.)