पिछली बार मछलीशहर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी राम चरित्र निषाद ने जीत दर्ज की थी और बसपा दूसरे नंबर पर रही. पर सपा-बसपा गठबंधन के बाद इस बार हालात बदल गए हैं
मनीष कुमार यादव

उत्तर प्रदेश के मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र के केराकत में आपको पहली बार लोगों से मिलकर लगेगा कि राजनीति में इनकी कोई रुचि नहीं है, ख़ासकर अगर आप राजनीति का यह सवाल लेकर आए हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में उनके वोट किसके पक्ष में जाएंगे.
अपनी पत्रकारिता को पांच मिनट का आराम दीजिए, लोगों के हाल-चाल पूछिए, खेतों-फसलों की बातें कीजिए, और कोई व्यक्ति बरबस ही बोल पड़ेगा, “इहां मोदी-ओदी के भोट देवै वाला केहु नाहीं बाय, जे भी अपने-अपने फायदा बदे भोट देला, उहै सब मोदी के भोट देई” (यहां कोई मोदी को वोट देने वाला नहीं है, जो लोग सिर्फ अपने फायदे के लिए वोट दे रहे हैं, वही लोग मोदी को वोट देंगे). अपने फायदे से उनका इशारा चुनाव के दौरान वोट देने के लिए अवैध रुप से मिलने वाले पैसों, कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों को चुनाव प्रचार के दौरान दी जाने वाली दावतों और लोगों तक पहुंची कुछेक सरकारी योजनाओं की राशियों से है.
गौरतलब है कि गांव के लोग थोड़ा खुलने के बाद बातें तो करते हैं, मगर ज़्यादातर लोग वीडियो पर आकर बात करने या बाइट देने से सरासर मना कर देते हैं. जाहिर है कि डिजिटल भारत के सपनों वाली सरकार में इसका कारण समझ पाना कोई मेहनत का काम नहीं है.
पिछली बार मछलीशहर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी राम चरित्र निषाद ने जीत दर्ज की थी और बसपा दूसरे नंबर पर रही. पर सपा-बसपा गठबंधन के बाद इस बार हालात बदल गए हैं. सपा-बसपा के वोट को मिला लें तो उनका कुल वोट भाजपा को मिले वोट से अधिक है. सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के पक्ष में एक बात और जा रही है कि इस बार भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर भाजपा सांसद राम चरित्र निषाद सपा में शामिल हो गए हैं. महागठबंधन में यह सीट बसपा के पास है. बसपा ने इस सीट से त्रिभुवन राम को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने बीपी सरोज पर दांव खेला है.

सूबे के इस इलाके में लोग राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों के काम-काज और रवैये से परेशान हैं. उनका मानना है कि योगी-मोदी सरकारों ने मिलकर उत्तर प्रदेश का भला करने की बजाए उसे नुकसान ही पहुँचाया है. गांव की एक बुज़ुर्ग महिला से जब पूछा कि वो किसे वोट देंगी तो उन्होंने कहा, “हमहन के का पता कि केके भोट देवै के हौ, मरद लोग जेके भोट देवै कहिहैं ओके भोट पड़ जाई…लेकिन मोदी के देवै कहिहैं तब न देब…”(हमें क्या पता किसे वोट देना है, घर के मर्द जिसको कहेंगे, उसको दे दिया जाएगा… लेकिन अगर मोदी को वोट देने को कहेंगे तो नहीं देंगे). इन्हें मुझसे बात करते देख दो और महिलाएं आकर बातें करने लगती हैं. इनमें से एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका हैं, और दूसरी गृहणी हैं. दोनों का यह मानना है कि योगी-मोदी सरकार ने मिलकर राज्य और देश को समय से बहुत पीछे ले जाने का काम किया है. प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका बोलती हैं,
“कहे थे कि जीत जाएंगे तो नौकरी देंगे, जिसके पास था उसको भी निकाल दिए, जिसको रहने दिए उसका तनखाह कम कर दिए, मेरा आदमी छह महीना से घर बैठा है.” वहीं गृहणी बताती हैं, “लड़ाई दंगा करवा के मरवा देता है सब, खाली भोट के लिए, जीतने के बाद कुछ करता नहीं है.जानवर को सब जगह खुला छोड़ दिया है सब फसल खराब हो जाती है.”
गांव में लोगों को इस बात की समझ है कि सरकार दलितों और मुस्लिमों को परेशान कर रही है, आम लोगों के सरोकारों पर ध्यान देने की इनकी कोई मंशा नहीं है, और अगर यही सरकार एक बार और बनती है तो जनता के हित में कोई उल्लेखनीय काम नहीं होने वाला है. लोगों को नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक्स, विजय माल्या से लेकर कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों के वेतन में की गई कटौतियों और मवेशियों को खुला छोड़ देने की वजह से फसलों को हुए नुकसान का संज्ञान है. उन्हें लगता है कि मौजूदा सरकार को इन मुद्दों पर मार्क-डाउन कर सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन को सत्ता में लाना चाहिए.
ऐसा नहीं है कि गांव में हर कोई सरकार के खिलाफ़ ही है. कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनका मानना है कि लोगों को अपनी आमदनी तथा बेहतर जीवनशैली के लिए सरकारों पर निर्भर नहीं होना चाहिए. ऐसी सोच रखने वाले रमेश शर्मा (बदला हुआ नाम) बताते है कि सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन को वोट देने वाले लोग राष्ट्र और उसकी सुरक्षा को लेकर सचेत नहीं हैं. मौजुदा सरकार की नीतियों की वजह से पाकिस्तान शांत बैठा है और देश तरक्की की राह पर है. आतंकवाद के सवाल पर उनका कहना है कि पांच साल जैसे कम समय में आतंकवाद जैसी चीज़ पर पूरी तरह लगाम लगा पाना मुमकिन नहीं है, मगर सरकार का इस दिशा में अच्छा काम रही है और इसीलिए इसे एक और मौका देने की ज़रुरत है.
कांग्रेस की राजनीति पर इस इलाके के लगभग कोई बात नहीं करता. सबकी कमोबेश एक राय है कि राज्य तो नहीं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी के अलावा कोई और नेता होता तो वहां कुछ सोचा जा सकता था. एक तबका ऐसा भी है जो मुलायम, मायावती या अखिलेश यादव को देश का अगला प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता है. कुल मिलाकर इस इलाके में महागठबंधन की ओर ज़्यादा रुझान दिखता है, हालांकि लोगों का असली मैंडेट तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा.