मायावती ने कहा कि किसी के दबाव में आकर उऩके खिलाफ आयोग ने कार्रवाई की गई है ताकि वे दूसरे चरण में प्रचार न कर सकें. अखिलेश ने कहा कि फिर पीएम मोदी पर रोक क्यों नहीं लग रही
द मार्जिन टीम

चुनाव आयोग की ओर से बसपा प्रमुख मायावती पर 48 घंटे के लिए चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगाने के बाद मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सवाल उठाए हैं. मायावाती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव आयोग का फैसला देश के लोगों के मूलभूत अधिकारों का हनन है. उन्होंने इसे लोकतंत्र का काला दिवस करार दिया और कहा कि आयोग ने उन्हें चुप कराकर देश के गरीबों की आवाज को चुप कराया है. मायावती ने कहा कि यूपी में दूसरे चरण के चुनाव जहां होने हैं, वहां उनका गठबंधन मजबूत स्थिति में है, इसलिए भाजपा के इशारे पर आगरा में उनकी चुनावी सभा से एक दिन पहले प्रतिबंध लगा दिया है. उन्होंने कहा कि आयोग ने उनका पक्ष सुने बिना प्रतिबंध लगा दिया.
बसपा प्रमुख ने कहा कि अगर मुझ पर भड़काऊ बयान देने का आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया जा रहा है तो फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर क्यों नहीं प्रतिबंध लगाया जा रहा है. दरअसल, मायावती पर अपने भाषण में मुसलमानों से वोट देने की अपील करने के आरोप में रोक प्रतिबंध लगाया गया है. इससे पहल सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी ट्वीट करके कहा था कि चुनाव आयोग ने मायावती पर प्रतिबंध लगा दिया क्या सेना के नाम पर वोट मांग रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोकने की ईमानदारी है. अखिलेश यादव ने नरेंद्र मोदी का बयान भी ट्वीट किया जिसमें उन्होंने पहली बार के मतदाताओं को बालाकोट और पुलवामा के नाम पर वोट देने की अपील की थी.
आज मायावती के साथ-साथ यूपी के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ पर भी 72 घंटे के लिए प्रतिबंध लगाया है. इसके साथ ही आयोग ने सपा नेता आजम खान और भाजपा की मेनका गांधी के खिलाफ भी रोक लगा दी है. जाहिर है, एक दिन में यूपी के चार-चार नेताओं पर प्रतिबंध संकेत दे देता है कि यूपी में चुनावी जंग कितनी महत्वपूर्ण हो गई है. हालांकि मेनका गांधी केवल अपनी लोकसभा सीट पर सिमटी हुई हैं. और योगी आदित्यनाथ भी उतने महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होते जितना कि यूपी के इस चुनाव में मायावती हो गई हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में योगी आदित्यनाथ अपने भड़काऊ भाषणों से भी भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में नाकाम रहे थे. यूपी में भी इस बार सपा-बसपा-रालोद गठबंधन भाजपा के गठबंधन के खिलाफ मजबूती से उभरी है. वहीं दलित वोटों की वजह से मायावती अपने गठबंधन के लिए बेहद प्रभावी हैं. वहीं आजम खान भी यूपी में प्रमुख मुस्लिम चेहरा है और सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन के लिए यह दोनों वर्ग महत्वपूर्ण हो गया है.
ऐसे में मायावती और आजम खान पर प्रतिबंध को उनके गठबंधन के लिए नुक्सान तथा भाजपा के लिए फायदे के तौर पर भी देखा जा रहा है. लेकिन भाजपा के लिए इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है. मसलन, अगर दलित वर्ग में यह संदेश चला गया कि जानबूझ कर बसपा प्रमुख को साजिशन निशाना बनाया जा रहा है तो वे चुनावी रूप से और एकजुट हो सकते हैं. मायावती ने अपने बयान में इसी ओर इशारा भी किया कि उनका गठबंधन यूपी में मजबूत है इसलिए उन्हें रोकने की मंशा से यह कार्रवाई की गई है. फिलहाल यह तबका इसी गठबंधन की ओर ही नजर आ रहा है.