जेल में बंद महिलाओं की सुध कौन लेगा?

    बिहार के मुफ्फरपुर जेल की एक महिला कैदी ने प्रधानमंत्री से गुहार लगाते हुए कहा है कि उसे शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर किया जाता है. जेलों में मेरे अनुभव यही हैं कि महिला कैदियों को नारकीय स्थिति से गुजरना पड़ता है

    नेहा यादव

    तीन महिलाएं, प्रतीकात्मक तस्वीर
    प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: Steve Evans from Citizen of the World [CC BY 2.0 (https://creativecommons.org/licenses/by/2.0)])

    हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय जेल में बंद एक महिला कैदी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर गुहार लगाई और आरोप लगाया कि उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है. ऐसा नहीं करने पर भूखा तक रखा जाता है. कई लोगों को यह सुनकर हैरानी हुई होगी लेकिन जेलों के मेरे अनुभव तो यही कहते हैं कि वहां महिला कैदियों को कई तरह से शारीरिक और मानसिक यातना का शिकार होना पड़ता है. ताजा आंकड़े देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों ने 2016 की प्रिजन स्टेटिस्टिक्स यानी देश की जेलों को लेकर विभिन्न आंकड़े जारी किए हैं. साल 2015 में जहां देश की जेलों में बंद महिलाओं की संख्या 17,834 थी, जो 2016 में 18,498 हो गई है. हालांकि यह महज करीब चार फीसदी की वृद्धि है लेकिन जेलों के मेरे अनुभव रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं. गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से 66 फीसदी महिला कैदी अंडरट्रायल थीं, यानी उन पर दोष अभी साबित नहीं हुआ है. जेल में बंद कैदियों के भी कुछ अधिकार होते हैं लेकिन मेरा व्यक्तिगत अनुभव यही है कि खासकर जेल में बंद महिलाओं को न तो स्वास्थ्य सुरक्षा मिल पाती है और न ही उचित खान-पान. ऊपर से शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना होती है.

    बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलनों में शामिल रहने की वजह से प्रशासन को मुझसे काफी खुंदस थी और मैं पशु तस्करों का खुलासा भी कर रही थी. लिहाजा उऩकी मिली-भगत में मुझे विभिन्न आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया था. वाराणसी जेल में मैं करीब 20 दिन रही थी. वहां के मेरे अनुभव हैं कि महिला कैदियों को बेहद नारकीय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा इलाहाबाद जेल के मेरे अनुभव और लखनऊ जेल की महिला कैदियों के साथ मेरी बातचीत के नतीजे ऐसे ही रहे हैं.   

    सरकार स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर विभिन्न योजनाएं चलाती हैं लेकिन ये सुविधाएं जेल में बंद महिलाओं को नहीं मिल पाती. इससे उनमें मानसिक और शारीरिक रूप से नकारात्मक बदलाव आता है, जो उनके व्यवहार और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. मैंने वाराणसी जेल के महिला बैरक में बंद कैदियों से बातचीत की थी और उनसे विभिन्न चीजों को जाना था. जाहिर है, जेल के अंदर मिलने वाले भोजन का कोई मानक स्तर नहीं था और बेहद खराब गुणवत्ता का भोजन दिया जाता था. हाइजीन की बात तो छोड़ ही दीजिए. मैंने गौर किया कि जितनी भी महिला बंदी हैं उन सभी के अपराध के पीछे कहीं-न-कहीं उनका मानसिक असंतुलन ज्यादा जिम्मेदार है. ऐसा लगा कि बेगुनाह महिलाएं भी पुलिस की लापरवाही से दहेज़ प्रथा ऐक्ट में वर्षों से बंद हैं, जिनके केसो पर पुलिस बिना छानबीन किए चार्जशीट जमा कर भेज देती हैं.

    जेल के अंदर महिलाओं का भयंकर शोषण देखने को मिलता है. सेक्सुअल मोलेस्टेशन और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं अपराध के आरोप में बंद महिलाओं के साथ भी होती हैं. जेलकर्मियों के द्वारा वे प्रताड़नाओं का शिकार भी होती हैं, तो पहले से रह रही कैदियों की रैंगिंग सरीखी पिटाई से भी उन्हें गुजरना पड़ता हैं. महिलाओं के हेल्थ चेकअप के लिए पुरुष डॉक्टर थे और महिला डॉक्टर नहीं तैनात नजर आते. आखिर क्यों? जेल में बंद 90 महिला कैदियं से मैंने पूछा कि क्या उन्हें सेनेटरी नेपकिन मिलती हैं, तो उन्होंने बोला हां, लेकिन सिर्फ 4 जिनकी हालत एक घंटे इस्तेमाल करने की भी नहीं रहती. मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें खाने में नानवेज मिलता है, तो सभी का उत्तर नहीं था और उन्होंने बताया कि केवल उनके बच्चो को एक अंडा हफ्ते में मिलता है. 2016 की प्रिजन स्टेटिस्टिक के मुताबिक, जेलों में करीब दो हजार बच्चे भी अपनी मां के साथ रहने को मजबूर हैं. जाहिर है, उनकी जिंदगी भी बदतर ही होती है. जिस उम्र में बच्चे खेलने-कूदने में मगन रहते हैं, ये बच्चों का जीवन अंधकारमय हो जाता है.

    कुछ महिला कैदियों ने तो यह भी आरोप लगाया कि उन्हें सेक्स कंट्रोल और स्लीपिंग पिल्स जैसी दवाईयां भी दी जाती हैं. यह बेहद खतरनाक बात थी. दावे बहुत किए जाएं लेकिन हकीकत तो यही है कि न तो उन्हें या वहां रहने को मजबूर बच्चों को न तो उचित शिक्षा मिल पाती है और न ही कोई रोजगारपरक ट्रेंनिंग. जाहिर है, जेलों की पूरी व्यवस्था अपराधियों को सुधारने की नहीं नजर आती बल्कि उन्हें और अपराध की ओर मोड़ती नजर आती हैं. अगर जेल सुधार गृह की तरह कार्य करें, खासकर महिल कैदियों के लिए, तो वे महिलाएं दोबारा किसी तरह के अपराध में शामिल नहीं होंगी. जाहिर है, सजा का मतलब अपराधियों का सुधार होना चाहिए.

    (लेखिका उत्तर प्रदेश में एक सक्रिय स्टूडेंट लीडर हैं)