अब अपनी चौखट पर भी मंदी का संकट!

    जब से काम-धाम कर रहा हूं शायद बीते इतने वर्षों में लोगों को पहली बार इतना हताश देख रहा हूं. यहां तक कि अपने घर में भी मंदी की मार देख रहा हूं

    मुन्ना झा

    नोट बंदी के बाद लगी कतार
    नोट-बंदी के बाद एक बैंक के आगे लगी कतार में खड़े लोग (फोटो: अतुल आनंद)

    भयानक मंदी है. फिर भी लोग यह मानने को तैयार नहीं है कि सबकुछ ठीक नहीं है. अब जेट एयरवेज बंद हो गया और उसके बीस हजार से भी ज्यादा कर्मचारियों की नौकरियां छीन गई. सिर्फ़ बड़े कंपनियों के डूबने और बंद होने पर ही बेरोज़गारी दिख रही है ऐसा नहीं है. बीते पांच साल में देश में बेरोज़गारी की मार हर तबके पर पड़ी है. ग़रीब और ग़रीब हुए हैं इसलिए कि जो कुछ कमा पाते थे वह भी छीन गया. लोअर मध्यम वर्गी लोग भी बुरे हाल में हैं. दिन-रात मेहनत कर सरकारी नौकरी के लिए मेहनत करने वाले युवाओं को आज भी नौकरी का इंतज़ार है. जिनके यहां नौकरी थी भी तो नोटबंदी सरीखे नीतिगत सुधारों के नाम पर चली गई हैं या जाने के कगार पर हैं. देश का बाकी बचा हुआ मध्यवर्ग एक उत्साह के बाद अब ठंडा पड़ गया है. बीते पांच साल में कई आइटी कंपनियां बंद हुई हैं जिनमें सबसे ज़्यादा लोग इन्हीं मध्यम वर्ग से आते थे. पहले किंगफ़िशर और अब जेट एयरवेज और आने वाले समय में एयर इंडिया बंद होगी या बिक जाएगी. जो बंद हुए वहां लोग बेरोज़गार हो गए है और जो कुछ काम कर रहे हैं उन्हें आने वाली बेरोजगारी का डर सता रहा है.

    Jet airways employee
    जेट एयरवेज का एक कर्मचारी कंपनी बंद होने के बाद (फोटो: ट्वीटर)

    जब से काम-धाम कर रहा हूं शायद बीते इतने वर्षों में लोगों को पहली बार इतना हताश देख रहा हूं. यहां तक कि अपने घर पर भी सरकार द्वारा निर्मित मंदी की मार देख रहा हूं. कई रिश्तेदार जो कई तरह के छोटे- छोटे काम कर रहे हैं वे हताश हैं और भयंकर निराशा में हैं. पहले वे जितना भी कमा पा रहे थे अब उसकी आधी आमदनी भी नहीं हो पा रही है. इसकी वजह से खानेपीने से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक में असर पड़ रहा है. इसे शायद हम और आप समझ नहीं पा रहे हैं. शायद इसलिए भी कि हमें रोज़ का ख़र्च जुटाने की जद्दोजहद का सामना नहीं करना पड़ रहा है.

    मेहनत से वाइट मनी कमाने वाले हमारे एक साथी जो नोएडा में अपने मकान में बीते तीन साल से रह रहे थे, वे आजकल अफ़रातफ़री में हैं. वजह सिर्फ़ एक है- बेरोज़गारी. वे बीते छ महीनों से बेरोज़गार हैं. उनके दो बच्चे पढने वाले हैं जिनकी फीस हर महीने जमा करनी है. बाक़ी घर का राशन और ईएमआई तो है ही. उन्हें यह सब मैनेज करते-करते जो बचाखुचा बचत था वह भी खत्म हो गया. अब संकट चौखट पर आ गयी है. वे बस वहां इसलिए रूके हैं कि उन्होंने मकान जितने में ख़रीदा था कम-से-कम उतने में बिक तो जाए. अब आप इसे क्या कहेंगे? जो हो रहा है वह ठीक है या सरकार नहीं करा रही है? लोग बेरोज़गार हो रहे हैं इसमें सरकार क्या करेगी? शायद और भी बहुत सारे सवाल कर सकते हैं आप लोग सरकार और नए भारत के पक्ष में, करिए कौन रोक रहा है? बस एक बार अपने घर के आसपास और अपने घर में बहुत सारे लोगों को देखिए और फिर समझने की कोशिश कीजिए कि क्या यह सब जो नए भारत के नाम पर हो रहा है उसमें रोज़ी रोटी की कोई गुंजाइश बची रह जाएगी? क्या अपने आसपास बीते पांच साल के दौरान कोई काला धन कमाने वाला रोज़ी रोटी के लिए संघर्ष करता दिख रहा है? क्या उसके बच्चें अब स्कूल जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. शायद नहीं, बल्कि वे तो विदेश भाग जा रहे हैं. तो फिर सवाल कीजिए उन लोगों से जो काला धन पर बड़े लोगों को जेल भेजन और बर्बाद करने की बात करते नहीं थकते थे.

    (लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं)