क्या लोग नस्लीय टिप्पणियों के इतने आदी हो गए हैं?

    लोकसभा चुनाव को राजनेताओं ने ऐसा जंग बना डाला है जहां अमर्यादित टिप्पणियां धड़ल्ले से इस्तेमाल की जा रही हैं. इनमें नस्लीय टिप्पणियों पर तो किसी का बहुत ध्यान भी नहीं है

    तहसीन मजहर

    पीएम मोदी के साथ कुमारस्वामी (फोटोः कुमारस्वामी के फेसबुक पेज से साभार)

    देश में चल रहा लोकसभा चुनाव बहुत शोर कर रहा है. कम-से-कम नेताओं की ओर से एक-दूसरे पर की जा रही टिप्पणियां तो ऐसी हैं ही कि कान बंद कर लेने का मन करे. लेकिन लगता है सियासत के लिए यह सामान्य बात बात-सी हो गई है. जनता के कान भी उन्हें बार-बार सुनकर पक चुके हैं और वह इसकी आदी हो गई है. लेकिन क्या वाकई ये इतनी सामान्य बात है? नहीं मेरे ख्याल से तो नहीं. यह दरअसल भारतीय सियासत और समाज की उस सड़ांध की पोल खोल रही हैं, जो यहां रच-बस सा गया है.

    हाल ही में दो-तीन आपत्तिजनक टिप्पणियों पर खासा हंगाम हुआ. खासकर राजनीतिक गलियारे में और मीडिया में तथा मीडिया के जरिए लोगों में भी. इनमें आजम खान और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की टिप्पणियां प्रमुख हैं. कथित तौर पर जया प्रदा को लेकर आजम खान की टिप्पणी पर तो सत्ता पक्ष और मीडिया ने भी काफी हंगामा किया. यहां तक कि कांग्रेस की ओर से भी आलोचना से सुर सुनाई दिए. इसी तरह प्रज्ञा सिंह ठाकुर की हेमंत करकरे पर टिप्पणी पर भी मीडिया से लेकर पूरे विपक्ष ने ठाकुर और भाजपा की काफी लानत-मलामत की. साध्वी की टिप्पणी चूंकि देश के एक शहीद से जुड़ी हुई थी सो भाजपा को थोड़ा बैकफुट पर आना पड़ा क्योंकि वह खुद देशभक्ति का ढिंढोरा पिटती रहती है. वहीं आजम खान की टिप्पणी स्त्री से जुड़ी हुई थी और वह भी सत्ता पक्ष की महिला नेता से. बहुत कुछ इस पर भी निर्भर होता है कि टिप्पणी किस पर की गई है, वह सत्ता पक्ष से जुड़ा है या नहीं, उसी हिसाब से तवज्जो भी मिलती है. वरना मीडिया इतना महिला-हितैषी भला कहां है! इसी तरह हिमाचल प्रदेश के भाजपा नेता सतपाल सत्ती ने खुले मंच से राहुल गांधी को गाली दे दी. आजम खान के अलावा सत्ती पर भी चुनाव आयोग ने कार्रवाई की है.

    भाजपा नेता राजू कागे

    लेकिन इनके अतिरक्त कर्नाटक में भी एक ऐसी टिप्पणी हुई जिस पर उतना हंगामा नहीं बरपा. पूर्व भाजपा नेता राजू कागे ने मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बारे में कह दिया कि ‘अगर कुमारस्वामी दिन में 100 बार भी नहा लें तो वे काले भैंस की तरह ही दिखेंगे.’ स्पष्ट है कि यह मुख्यमंत्री पर बहुत वाहियात नस्लीय टिप्पणी है. यह खबर तो बनी लेकिन उस तरह कोई हंगामा या लानत-मलामत नहीं हुई. कर्नाटक में ही कांग्रेसी मंत्री जमीर अहम खान ने प्रधानमंत्री के बारे में कह दिया कि ‘मोदी के चेहरे को देख कर उनकी पत्नीी ने उन्हें छोड़ दिया, क्या लोगों को ऐसे चेहरे को वोट देना चाहिए.’ बहुतों को ये सामान्य टिप्पणियां लग सकती हैं लेकिन मेरे ख्याल से ऐसा नहीं है. इसी तरह राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान शरद यादव ने वसुंधरा राजे को कह दिया था के वे ‘मोटी’ हो गई हैं, उन्हें आराम दो. लेकिन लगता है कि लोग ऐसी टिप्पणियां सुनने को आदी हो गए हैं. और ये टिप्पणियां आती कहां से हैं. जाहिर है कि हमारे समाज में ही व्याप्त हैं. केवल राजनेता क्या हम अपने आसपास ही देख सकते हैं. लोग शरीर की बनावट, मोटापा, रंग आदि को लेकर न जाने कितनी ऐसी टिप्पणियां एक-दूसरे को कहते नजर आ जाते हैं. दिल्ली में नॉर्थ इस्ट की महिलाओं पर ही क्या कम ऐसी नस्लीय टिप्पणियां होती हैं! यह भी सच है कि ऐसी अधिकतर टिप्पणियां महिलाओं और कमजोर तथा वंचित समूहों के लोगों के खिलाफ ही की जाती है.

    लेकिन कहीं कुछ सुधरता तो नहीं दिख रहा. बसपा नेता मायावती पर भाजपा नेता साधना सिंह की टिप्पणी को ही लें, जिसमें साधना ने उनके बारे में कह दिया था, “वे तो किन्नर से भी बदतर हैं, क्योंकि वे न नर हैं न महिला हैं.” लेकिन हुआ क्या, हंगामा होने के बाद वे बस चलताऊ माफी मांग कर निकल गईं. तो मायावती पर ही अश्लील टिप्पणी करने वाले दयाशंकर सिंह तो भाजपा में ससम्मान वापस ही हो गए थे. जाहिर है, कम-से-कम राजनीति में तो कुछ बदलता नजर नहीं आ रहा. इस लोकसभा चुनाव में तो और जोर-शोर से बिगड़े बोल बे जा रहे हैं. धर्म-जाति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां हो रही हैं. न तो किसी के मन में महिलाओं को लेकर सम्मान हैं. फिर बाकी नस्लीय टिप्पिणियों पर भला कहां किसी को कोई फिक्र नजर आए. वह भी तब जब हमारे आसपास धड़ल्ले से ऐसी टिप्पणियां सुनी-बोली जाती हैं. हमें दरअसल, इस कसौटी के आईने में खुद को देखना चाहिए. बार-बार. लेकिन शायद हमने इसे देखना छोड़ दिया है और इसके आदी हो गए हैं.