48 वर्षीया प्रज्ञा ठाकुर हेल्थ ग्राउंड पर जमानत पाकर चुनाव भी लड़ सकती हैं पर 71 वर्षीय लालू यादव को जमानत भी नहीं मिल सकती? इसलिए क्योंकि लालू सेकुलर राजनीति के नायक हैं
संपादकीय

मालेगांव बम धमाके की प्रमुख आरोपी 48 वर्षीया साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को अप्रैल, 2017 में जमानत देते हुए बंबई हाइकोर्ट ने कहा था कि मेडिकल दस्तावेजों के मुताबिक ठाकुर को ब्रेस्ट कैंसर है और वे बिना सपोर्ट के चल भी नहीं सकती हैं. उसके ठीक दो साल बाद प्रज्ञा ठाकुर भोपाल की गलियों में भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार के बतौर ‘युद्ध’ छेड़ रही हैं. भाजपा उम्मीदवार बनने के बाद अपने पहले बयान में उन्होंने लोकसभा चुनाव को ‘धर्म युद्ध’ ही बताया है. जाहिर है, यह उनकी कट्टर हिंदूवादी और मालेगांव धमाके (9 सितंबर, 2008) के आरोप से जुड़ी छवि ही है कि भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है. और कथित तौर पर दो साल पहले ‘चल-फिर भी नहीं सकने वाली’ प्रज्ञा ठाकुर न केवल राजनीतिक तौर पर पूरी तरह सक्रिय हैं, बल्कि भाजपा के साथ मिलकर भोपाल की सियासी फिजां को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर मोड़ने की कोशिशों में जुटी हैं.
राजनीतिक सक्रियता का हवाला देते हुए ही सीबीआइ/सरकार ने चारा घोटाले मामले में सजा भुगत रहे राजद नेता लालू प्रसाद यादव की जमानत की अर्जी का विरोध किया था. सरकार ने कहा था कि लालू यादव फिट हैं और जमानत पर निकल कर उनके राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय होने की आशंका है. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट लालू यादव को जमानत देने से साफ इनकार कर दिया था. जब लालू यादव के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा कि उनके द्वारा जमानत के उल्लंघन का कोई खतरा/आशंका नहीं है, मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने कथित तौर पर कहा था कि ‘कोई खतरा नहीं है सिवाय इसके कि आप दोषी हैं.’ लालू यादव को सीबीआइ की विशेष अदालत ने चारा घोटाले से संबंधित चार मामलों में दोषी ठहरा दिया था और उन पर उससे जुड़े दो अन्य मामले चल रहे हैं. हालांकि अदालती कार्यवाही के दौरान लालू यादव और उनके गवाहों के प्रति हाइकोर्ट का रवैया भी सवालों के घेरे में रहा है.
अब प्रज्ञा ठाकुर भले ही अभी दोषी करार नहीं दी गई हों और उन्हें महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट (मकोको) संबंधी मामले में हाइकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया गया था. लेकिन अब भी उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम संबंधी मामला चल ही रहा है. मोदी सरकार आने के बाद नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआइए) का रुख बदला है. अभियोग चलाने वाले वकील पर एजेंसी द्वारा हिन्दू अतिवादियों पर नरमी बरतने का दबाव डालने की भी बात सामने आई थी. प्रज्ञा ठाकुर के लोकसभा उम्मीदवार बनने के बाद मालेगांव धमाके के एक पीड़ित के पिता निसार सैयद ने एनआइए अदालत में प्रज्ञा की जमानत और उम्मीदवारी के खिलाफ अपील की है. उनका कहना है कि हेल्थ ग्राउंड पर प्रज्ञा जमानत पर हैं, पर वे सक्रिय रूप से इस गर्मी में भी चुनाव लड़ रही हैं यानी उन्होंने अदालत को स्वास्थ्य कारणों का झूठा हवाला दिया है. हेल्थ ग्राउंड पर ही वे अदालती सुनवाईयों से भी छूट हासिल कर रही हैं. जाहिर है, प्रज्ञा ठाकुर जमानत का उल्लंघन करती नजर आ रही हैं.
लालू यादव के प्रज्ञा ठाकुर की तुलना बेमानी है क्योंकि लालू यादव का कद बहुत बड़ा है, वहीं प्रज्ञा ठाकुर अपने हिंदुत्ववादी भाजपाई-संघ के खेमे में भी उतनी बड़ी शख्सितयत नहीं हैं. सेकुलर खेमे में लालू यादव ही वह बड़ी शख्सियत है जिससे भाजपाई खेमा डरा रहता है. उन्होंने जिस तरह से भगवा पार्टी से भिड़ते रहे हैं, और हाल में भी पिछले बिहार विधान सभा चुनाव सरीखी कामयाबी हासिल करते रहे हैं, उससे भाजपा का डर लाजिमी है. इस चुनाव में उनकी कमी इसी वजह से शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है. यही वजह है कि भाजपा-संघ के साथ-साथ पूरी व्यवस्था उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहती, कम-से-कम लोकसभा चुनावों तक.
हेल्थ ग्राउंड की ही बात करें तो 71 वर्षीय लालू यादव को दर्जन भर बीमारियां हैं. मार्च, 2019 में ही डॉक्टरों ने कहा था कि लालू यादव की 62 फीसदी किडनी काम नहीं कर रही है. वे क्रोनिक किडनी डिजीज (स्टेड थ्री) के रोगी हैं. वह शुगर के पुराने मरीज हैं और उन्हें अर्थराइटिस भी हो गया है. जाहिर है, अदालती और सरकारी रवैया प्रज्ञा ठाकुर और लालू यादव के मामले में भेदभाव से भरा नजर आता है. सबसे बड़ी बात सरकार और व्यवस्था अपने मुताबिक चाहती है कि कौन सियासी रूप से सक्रिय रहे और कौन नहीं. उन्हें उग्र हिंदुत्वादी चेहरा चाहिए क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनका कोई और दांव काम करता नहीं दिखाई दे रहा है. दूसरी ओर लालू यादव भगवा खेमे की हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की काट हैं, जिनका बाहर आना उसके लिए और बुरा साबित हो सकता है.