लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक धुरी में आ गए. ऐसे में राजीव का वह मशहूर बयान भी दांव पर लगा नजर आ रहा है
अविनीश मिश्रा

राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता है और ना ही कुछ भी संभव. यानी संभव और असंभव के बीच का जो खेल खेला जाए, वह भी राजनीति है. विषय प्रवेश से पहले ये भूमिका गैरजरूरी लगी हो तो माफ कीजिएगा.
साल 1991. यह उस दशक का शुरुआती साल था जब कुछ चर्चित राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन शुरु हुए. उसी दौरान देश मध्यावधि चुनाव में उतर रहा था. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर संख्याबल न होने के कारण इस्तीफा देने जा रहे थे. तब राजीव गांधी का एक बयान जारी होता है,” देश की सत्ता से कांग्रेस को हराया तो जा सकता है, लेकिन उसे पांच साल से ज्यादा बाहर नहीं रखा जा सकता है.”
राजीव गांधी का अहंकार बोल रहा था या आत्मविश्वास? यह तो विश्लेषण का विषय है, लेकिन राजीव गांधी का ये बयान उस समय तक सच था. पहली बार 1977 में गैर-कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी तो जरूर थी, लेकिन वह पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी. फिर चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी से प्रधानमंत्री बने लेकिन बैसाखी कांग्रेस का ही था.
यानी उस दौर का यह सच हो चुका था कि सत्ता की चाबी कांग्रेस के पास ही रहेगी. साल 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर तीसरे मोर्चे की सरकार बनी लेकिन वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी. जनता दल में टूट-फूट हो गया. चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए और चंद्रशेखर बने तो क्या बने? उनकी भी सरकार 11 महीने में ही गिर गई.
राजीव गांधी का बयान उसी संदर्भ में दिया गया और वही संदर्भ भारतीय राजनीति की हकीकत बन गई थी. साल 1998 में भी गैर-कांग्रेसी सरकार बनी लेकिन 2004 आते आते कांग्रेस फिर सत्ता के केंद्र में आ गई. उसने लगातार 10 साल तक शासन भी किया लेकिन 2014 में कांग्रेस हवा का रुख नहीं भांप पायी.
चुनाव परिणाम आने के बाद एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा था, “हम हार रहे थे लेकिन इतनी बुरी तरह हारेंगे यह नहीं सोचा था.” वर्तमान में कमलनाथ, कांग्रेस के नए खेवनाहर राहुल गांधी के विशेष सिपहसालार और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. कभी 413 सीट वाली कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनावों में 44 सीटों पर सिमट गई. विपक्ष में बैठने के लिए जरूरी सीट भी पार्टी को नहीं मिल पायी. चार साल तक कांग्रेस भाजपा के पिच पर ही खेलती रही. अचानक से कांग्रेस ने ट्रेंड बदला और अब तीन राज्य उसने भाजपा के से छीन लिए हैं.
इसी बीच 17 वीं आम चुनावों की घोषणा हो गई. छठे चरण के चुनाव से पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एकबार फिर भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक धुरी में आ गए. पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के लोकसभा सीटों पर चुनाव होने के कारण उनका परिदृश्य में आना लाजिम था. सिख विरोधी दंगे का आरोप विपक्षी पार्टी हमेशा से राजीव गांधी पर लगाते रहे हैं.
लेकिन राजीव गांधी को राजनीति में घसीटने से कांग्रेस आक्रामक मोड में आ गई. कांग्रेस को लगा एकबार फिर सहानुभूति वोट राजीव बहाने मिल जाएगा. लेकिन…
कांग्रेस और भाजपा के लिए सबसे चुनौती राजीव गांधी के उस बयान को गलत या सही ठहराने का है. भाजपा के लिए जहां यह लड़ाई आर-पार की है, वहीं कांग्रेस के पास कुछ खोने के लिए नहीं है. कुल मिलाकर दोनों दलों को उस बयान की फिक्र होगी. कांग्रेस राजीव गांधी के बयान को सच करने में जुटी है, तो भाजपा उसे झूठलाने में.
(लेखक स्वतंत्र युवा पत्रकार हैं)