हाल में बसपा पर युवा दलितों को आगे नहीं बढ़ाने का आरोप लगता रहा है. लेकिन बसपा ने बिहार के गोपालगंज में 29 वर्षीय कुणाल किशोर विवेक को लोकसभा चुनाव में उतारा है, जो संभवतः पार्टी के सबसे युवा उम्मीदवार हैं. गोपालगंज और बिहार में बसपा की संभावनाओं से लेकर चंद्रशेखर, जिग्नेश मेवानी, कन्हैया समेत तमाम मुद्दों पर उनसे बातचीत
सरोज कुमार

पिछले पांच साल में मोदी सरकार के दौरान दलितों के कई दमदार विरोध-प्रदर्शन हुए हैं और इनमें युवा दलितों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इस बीच भीम आर्मी के चंद्रशेखर से लेकर गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी जैसे युवा दलित चेहरे उभरे हैं. इसी के साथ विरोधियों की ओर से बसपा पर हाल में युवा दलित चेहरों को पार्टी में आगे नहीं बढ़ाने का आरोप लगता रहा है. लेकिन बसपा ने इस बार के लोकसभा चुनाव में 29 वर्षीय कुणाल किशोर विवेक को बिहार के गोपालगंज लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. वे संभवतः पार्टी के सबसे युवा उम्मीदवार हैं. उन्होंने हाल तक करीब छह माह के लिए बिहार में बसपा के प्रभारी की जिम्मेदारी भी संभाली थी. वे फिलहाल काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी से पीएचएडी कर रहे हैं. उन्होंने द मार्जिन के साथ बातचीत में गोपालगंज में अपनी संभावनाओं से लेकर बसपा, चंद्रशेखर, जिग्नेश, कन्हैया समेत अपने विभिन्न मुद्दों की बातचीत की. पेश हैं उसके प्रमुख अंशः
सवालः राजनीति में आप किस तरह आए?
जवाबः इससे तो मैं शुरू से जुड़ा रहा हूं. मैं जिस समाज से आता हूं, उसमें लोग शुरू से ही पीड़ित हैं. इसलिए उनकी आवाज हमेशा बनने की कोशिश की है. पर बीएचयू में साल 2008 में मेरे साथी छात्र किस्मत लाल की मौत के बाद मेरी सोच एकदम बदल गई और पूरी तरह सक्रिय राजनीति से जुड़ गया
सवालः गोपालगंज में 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को महज सत्रह हजार वोट मिल पाया था. वहीं भाजपा के विजयी उम्मीदवार जनक राम को करीब पौने पांच लाख वोट तो कांग्रेस को करीब दो लाख और जदयू को एक लाख वोट मिले थे. इस भारी भरकम वोटों के अंतर को कैसे पाट पाएंगे?
जवाबः दरअसल, जनक राम बसपा में ही थे, उनके लिए बसपा ने 2014 में काफी मेहनत की थी. लेकिन पिछली बार वे ऐन लोकसभा चुनाव के वक्त पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए थे. इसलिए बसपा के वोटों का भी फायदा उन्हें मिला. बसपा उम्मीदवार के तौर पर 2009 में जनक राम को करीब 50 हजार वोट मिले थे. लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं. दलित समाज में भाजपा को लेकर नाराजगी है. गोपालगंज क्षेत्र में मुस्लिम और पिछड़े समुदाय के लोग भी पार्टी के साथ आए हैं. बहनजी (मायावती) की रैली ने भी यहां काफी अच्छा रूझान देखने को मिला है. इसलिए यहां हमारी संभावनाएं हैं.
सवालः लेकिन, जब राजद नेतृत्व वाले बिहार का गठबंधन भाजपा के खिलाफ मजबूत लग रहा है तो फिर मुसलमान वोट यहां बसपा की ओर कैसे आएंगे?
जवाबः कांग्रेस और राजद सरीखे तमाम पार्टियों ने मुसलमान समाज को बस एक वोटबैंक की तरह ट्रीट किया है. वे यह भी देख रहे हैं कि दिल्ली की सत्ता से कौन भाजपा को हटा सकता है. इस मामले में बसपा मजबूत विकल्प है.
सवालः बिहार में बसपा की क्या संभावनाएं हैं?
जवाबः उत्तर प्रदेश में बसपा बहुत मजबूत है. यूपी से सटे हुए बिहार के इलाकों में बसपा मजबूत स्थिति में है. गोपालगंज भी ऐसी ही एक सीट है.
सवालः हाल में जिग्नेश मेवाणी और चंद्रशेखर जैसे युवा दलित चेहरे उभरे हैं. पर बसपा पर युवा दलित नेताओं को आगे नहीं बढ़ाने का आरोप लग रहा है. आप क्या सोचते हैं?
जवाबः बसपा में बकायदा यूथ विंग बना हुआ है. मैं भी उस में रह चुका हूं. मुझे जोन इंचार्ज बनाया गया. मुझे दक्षिण बिहार की बागडोर दी गई और फिर हाल तक मैं पूरे बिहार का इंचार्ज था. तो ये सब आरोप बेबुनियाद हैं. पार्टी में सख्त नियम है कि युवाओं को 50 फीसदी हिस्सेदारी जरूर दी जाए. जिग्नेश और चंद्रशेखर वगैरह तो मीडिया की ओर से स्पॉन्सर किए हुए नेता हैं.
सवालः आप मीडिया स्पॉन्सर्ड युवा की बात कह रहे हैं. बिहार में कन्हैया कुमार का उभार भी नजर आता है, आपका क्या कहना है?
जवाबः यह तो स्पष्ट नजर आ जाता है कि कैसे मीडिया ने उन्हें खड़ा किया. जिन भी मुद्दों को लेकर कन्हैया को आगे लाया गया, क्या किसी भी मुद्दे पर वे वाजिब तरीके से लड़े? मेरे समझ से तो नहीं. उनसे ज्यादा तो कई और युवाओं ने लड़ाई लड़ी है. यहां तक कि रोहित वेमुला के मुद्दे पर मैं भी लड़ा. वाराणसी में स्मृति ईरानी का कार्यक्रम तक मैंने इटरप्ट करवाया था वहां. अच्छा अभिनय कर लेने या अच्छे-अच्छे भाषण देने से कोई अच्छा नेता भी नहीं हो जाता. रविश कुमार वगैरह भी कन्हैया के लिए बेगूसराय गए, उन्हें गोपालगंज भी आ जाना चाहिए था.
सवालः गोपालगंज में आपके क्या-क्या मुद्दे हैं?
जवाबः यहां कई सारे स्थानीय मुद्दे हैं. यहां कोई यूनिवर्सिटी नहीं है, ईलाज के लिए अच्छे संस्थान नहीं हैं. रेलवे सेवा की समस्या है. लोगों को गोरखपुर-बनारस जाना पड़ता है. यहां गंडक नदी में कटान की बड़ी समस्या है. इन जैसे तमाम मुद्दे यहां हैं जिन पर मेरा ध्यान है.
सवालः बिहार में क्या वजह रही की बसपा अपनी मजबूत जगह नहीं बना पाई है, जबकि यहां दलितों की अच्छी-खासी आबादी है?
जवाबः बिहार में बसपा का अच्छा जनाधार रहा है. यहां से विधायक भी रहे हैं. हालांकि अतीत में गलतियां हुई हैं. पार्टी की ओर से अतीत में बिहार में जो प्रतिनिधि भेजे गए, उन्होंने कुशल प्रबंधन नहीं किया, ऐने-प्रकरेण यहां जोड़-तोड़ हुआ, जिनकी वजह से बसपा को नुक्सान हुआ. लेकिन वर्तमान में बिहार में प्रदेश और जिले स्तर में जो संगठन है वह अच्छी है, हम अच्छे लोगों को जोड़ रहे हैं. हमारे प्रदेश अध्यक्ष अति पिछड़े समाज से हैं. हम लोगों दलित, अतिपिछड़े और पिछड़ों यानी बहुजन समाज को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि हम सर्वसमाज की बात भी करते हैं. भविष्य में अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे.