पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में इस बार के चुनाव में भाजपा सांसद रामकृपाल यादव को राजद की मीसा भारती कड़ी चुनौती दे रही हैं. ऐसे में मोदी सरकार के प्रति दलितों की नाराजगी रामकृपाल यादव को भारी पड़ सकती है.
सरोज कुमार

पटना के फुलवारी शरीफ इलाके में चौहरमल नगर में प्रवेश के लिए ‘शिरोमणि बाबा चौहरमल द्वार’ बना हुआ है. यहां चौहरमल मंदिर से थोड़ा आगे बढ़ते ही राजकीय प्राथमिक विद्यालय है. इस स्कूल परिसर में दाखिल होते ही एक चबूतरे पर स्थापित डॉ. भीम राव आंबेडकर की मूर्ति दिख जाती है. चबूतरे पर लिखे शिलापट्ट से पता चलता है कि इस मूर्ति का अनावरण मुख्यमंत्री रहने के दौरान लालू प्रसाद यादव ने किया था. यहां शाम को पहुंचते ही कुछ छोटे बच्चे खेलते नजर आ जाते हैं. उनसे पूछने पर कि क्या उन्हें पता है कि यह मूर्ति किसकी है, वे जवाब देते हैं कि यह ‘आंबेडकरजी’ की मूर्ति है. इनके बारे में और क्या पता है? वे कहते हैं कि ये दलित जाति के थे और इन्होंने आजादी आंदोलन में भाग लिया था. वे बच्चे डॉ. आंबेडकर के बारे में और ज्यादा कुछ बता नहीं पाते. उनके मुताबिक, उन्होंने आंबेडकर के बारे में और कहीं नहीं पढ़ा या सुना, बल्कि उनका नाम वगैरह भी अगर पता है तो वहां स्थापित मूर्ति की वजह से ही. जाहिर है, इससे लालू प्रसाद यादव की ओर से अनावृत डॉ. आंबेडकर की इस मूर्ति का महत्व स्पष्ट हो जाता है. स्कूल परिसर में ही स्टुडेन्ट क्लब द्वारा संचालित बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर पुस्तकालय भी नजर आ जाता है.
यह चौहरमल नगर पाटलिपुत्र लोकसभा में पड़ता है, जहां इस बार आखिरी चरण में चुनाव हो रहे हैं. इस लोकसभा सीट पर भाजपा सांसद रामकृपाल यादव को इस बार लालू यादव की बेटी मीसा भारती कड़ी चुनौती दे रही हैं. स्कूल के पास में ही विनोद पासवान का मकान है. इस बार लोकसभा चुनाव में उनकी पसंद पूछने पर वे रामकृपाल यादव के प्रति अपना समर्थन जताते हैं. उनके मुताबिक, “रामकृपाल यादव ने यहां काफी काम किया है, वे सुलभ हैं और यहां आते रहे हैं.” यहां पर बृजमोहन कुमार नामक युवक नरेंद्र मोदी के पक्ष में वोट देने की बात कहते हैं.

लेकिन इस मोहल्ले के दिनेश पासवान इन दोनों के उलट राय देते हैं. उनका कहना है कि रामकृपाल यादव ने जीत के बाद इधर ध्यान नहीं दिया है. दरअसल, रामकृपाल यादव ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां मीसा भारती को हराया था. दिनेश पासवान वर्तमान राज्य और केंद्र की मोदी सरकार के प्रति भी अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं. वे स्कूल परिसर में स्थापित डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “बाबा साहेब के हाथ में जो यह संविधान दिख रहा है, मोदी सरकार में यही खतरे में है. हमारा आरक्षण खतरे में है. इस सरकार ने दलित-पिछड़ों को दरकिनार कर दिया और आरक्षण को नुक्सान पहुंचाया है. इसलिए हम दलित यहां उऩसे नाराज हैं.” पास में ही सार्वजनिक जगह पर एक नल लगा है, जहां से कुछ महिलाओं पानी भरकर अपने घर ले जाती नजर आती हैं. उन्हीं में से एक बताती हैं कि यहां बाकी मोहल्लों में तो बहुत सारे नल लगाए गए हैं, लेकिन हमारे यहां सिर्फ यही एक नल है जिसपर बहुत सारे लोग निर्भर हैं. वे कहती हैं कि यहां पानी की काफी समस्या हो जाती है. राजधानी पटना के एक दलित मोहल्ले की यह स्थिति विकास के दावों की पोल खोल देते हैं.

यहां की महिलाओं में मोदी सरकार के प्रति थोड़ी नाराजगी और मीसा भारती के प्रति समर्थन का रूझान नजर आता है. ऐसी ही एक महिला मीना देवी कहती हैं कि इस बार वे मीसा भारती को ही वोट देंगी. अपने दरवाजे पर बैठी राजकली देवी कहती हैं, “वर्तमान सांसद और सरकार ने कोई काम नहीं किया है. पढ़े-लिखे लड़के सब बेरोजगार हैं.” वहीं संजू देवी नामक एक युवती कहती हैं, “हमारी यही दिक्कत है कि हमें नौकरी चाहिए, हम बेरोजगार बैठे हुए हैं.” जाहिर है, आरक्षण से लेकर बेरोजगारी को लेकर यहां के लोगों में नाराजगी नजर आती है.
दिनेश पासवान यहां के लोगों को राजद यानी मीसा भारती के प्रति एकजुट करने की कोशिश करते नजर आते हैं. पहले जो बृजमोहन कुमार मोदी के प्रति समर्थन जता रहे थे, वे भी दिनेश कुमार के द्वारा समझाने-बुझाने के बाद राजद की ओर मोबलाइज होते नजर आते हैं. सरकारी नौकरी कर रहे यहीं के एक शख्स नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “भाजपा सरकार ने हम दलितों का बहुत नुक्सान किया है. आरक्षण से लेकर नौकरियों से हमें वंचित किया जा रहा है. अगर वह फिर आई तो हमारे लिए मुश्किल खड़ी करेगी. इसलिए इस बार दलितों में उसको लेकर आशंका है और हम लोग उनके खिलाफ मतदान करने को एकजुट हो रहे हैं.”
कुछ लोगों का कहना है कि रामकृपाल यादव का इस लोकसभा क्षेत्र में, खासकर शहरी इलाकों में व्यक्तिगत तौर पर अच्छा कनेक्ट हैं. लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी की वजह से इन तबकों में जो एकजुटता बनती दिख रही है, वह रामकृपाल यादव को नुक्सान पहुंचा सकती है. ग्रामीण इलाकों में प्रभाव रखने वाली भाकपा माले के समर्थन से भी मीसा भारती का पलड़ा इस बार भारी हो गया है. माले का भी दलितों में अच्छा-खासा समर्थन है. 2014 में मीसा भारती यहां करीब 40 हजार वोटों से हारी थीं और माले को यहां करीब 50 हजार वोट हासिल हुए थे. हालांकि जदयू भी यहां करीब 90 हजार वोट हासिल करने में सफल रही थी जो इस बार भाजपा के साथ है. विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा आबादी यादव समुदाय की है. लेकिन यहां दलित भी करीब 18 फीसदी आबादी हैं और मोदी सरकार से इनकी नाराजगी रामकृपाल यादव को इस बार भारी पड़ सकती है.