पीड़ित परिवार का कहना है कि दीपक गुप्ता कर्ज में डूबा हुआ था जिससे वह परेशान था. क्या उसके आमदनी के संकट के लिए मोदी सरकार की नीतियां जिम्मेदार नहीं हैं?
सरोज कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 अप्रैल को वाराणसी लोकसभा सीट के लिए बेहद भव्य तरीके से रोड शो करते हुए नामांकन दाखिल किया. यहीं से चुनकर वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए हैं. उनके काफिले पर करीब 25 क्विंटल गुलाब की पंखुड़ियों की बौछार की गई. कांग्रेस का आरोप है कि सिर्फ गुलाब की पंखुडियों पर 30 लाख खर्च किए गए. जाहिर है, प्रधानमंत्री की चुनावी यात्रा चमक-धमक से लैस है. चूंकि वे प्रधानमंत्री हैं, उनकी सरकार है, सो यह भव्यता तो होनी ही है. खासकर तब जब प्रधानमंत्री खुद अपनी साज-सज्जा और भव्यता का पूरा ख्याल रखते हैं. उनका नाम लिखा सूट पहनने जैसे कारनामे पहले ही देखे जा चुके हैं. जाहिर है, इन पांच साल में उनका और उनकी पार्टी का विकास भरपूर हुआ है. यूं ही नहीं उनकी पार्टी के भव्य ऑफिस जगह-जगह खड़े हो गए हैं.
हिंदुत्व और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तो उनकी चुनावी रणनीति में जाहिर तौर पर अनिवार्य तत्व के रूप में शामिल रहता है. लेकिन वे बार-बार देश का विकास करने का दावा करते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे डूबे दीपक कुमार गुप्ता नामक शख्स की अपनी तीन बेटियों के साथ आत्महत्या की घटना ने उनके दावों की धज्जियां उड़ा दी है. विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक, दीपक गुप्ता ने अपने तीन मासूम बेटियों, 10 वर्षीया आस्था, 8 वर्षीय मान्या और 6 वर्षीय रिया के साथ जहर खाकर जान दे दी. पीड़ित परिवार का कहना है कि दीपक गुप्ता कर्ज में डूबा हुआ था जिससे वह परेशान था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 30 वर्षीय दीपक गुप्ता ठेले पर रेडिमेट कपड़े बेचता था. देश में ऐसे छोटे-मोटे कारोबारियों का हाल किसी से छुपा नहीं है.
प्रधानमंत्री की नोटबंदी और जीएसटी जैसी योजनाओं की मार विभिन्न तरह के कारोबार पर पड़ी ही थी. नोटबंदी ने तो देशभर में हजारों लोगों को बेरोजगार कर दिया. कईयों को अपना छोटा-मोटो धंधा बंद करना पड़ गया. एनएसएसओ के आंकड़े पहले ही खुलासा कर चुके हैं कि देश में रोजगार का किस कदर बहुत ही ज्यादा संकट है. जाहिर है, आर्थिक मंदी और रोजगार के संकट ने प्रधानमंत्री के दावों को झुठला दिया है. यही वजह है कि उनकी पार्टी इन मुद्दों के बजाय ध्रुवीकरण के अन्य मुद्दों पर फोकस कर रही है.
विभिन्न रिपोर्ट में दीपक गुप्ता से आइपीएल सट्टेबाजी में भी लिप्त होने का आरोप लगाया जा रहा है. हालांकि ऐसा हर बार होता है कि किसी घटना के मूल मुद्दे को भटकाने के लिए इस तरह के शिगूफे छोड़े जाते हैं. लेकिन, जो भी हो, इतना तो तय है कि अगर उसके पास रोजगार या आमदनी का संकट नहीं होता तो वह ऐसा भयानक कदम उठाने की शायद ही सोचता. आर्थिक स्थिति बेहतर हो तो भला कौन अपनी तीन-तीन मासूम बच्चियों के साथ मरने को सोचेगा?
जाहिर है, इन पांच साल में देशे में रोजगार का संकट बढ़ता गया है. चंद कुछेक बड़े कारोबारियों और कुछेक तबकों को छोड़ दें, तो बहुतेरे लोगों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल ही हुई है. प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में जहां से वे दोबार ताल ठोंक रहे हैं, वहां अपनी बेटियों के साथ दीपक गुप्ता की आत्महत्या नरेंद्र मोदी के विकास के दावों को मुंह चिढ़ा रहा है. क्या प्रधानमंत्री इसे देख पा रहे हैं?