ट्रेलर से ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म जाति और जाति के नाम पर दलितों पर होने वाले हिंसक घटनाओं पर आधारित है. फिल्म संविधान के आर्टिकल 15 को केंद्र में रखती दिख रही है. लेकिन वह इन मुद्दों पर कितनी खरी उतर पाएगी यह तो फिल्म रिलीज होने के बाद ही पता चलेगा.
द मार्जिन टीम

इस फिल्म का ट्रेलर ही इस बयान से शुरु होता है, “मैं और तुम इन्हें दिखाई नहीं देते. हम कभी हरिजन हो जाते हैं, कभी बहुजन हो जाते हैं, बस जन नहीं बन पा रहे हैं कि जन मन गण में हमारी भी गिनती हो जाए.” यह ट्रेलर है आयुष्मान खुराना अभिनीत नयी फिल्म “आर्टिकल 15” जो 30 मई को जारी किया गया. जाहिर है, ट्रेलर से स्पष्ट है कि यह फिल्म जाति और जाति के नाम पर दलितों के उत्पीड़न पर केंद्रित नजर आ रही है. यह संविधान के आर्टिकल 15 पर आधारित है जो धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव पर पाबंदी लगाता है. फिल्म को निर्देशित किया है अनुभव सिन्हा ने और इसके निर्माता जी स्टूडियोज है. इससे पहले 27 मई को फिल्म का टीज़र जारी किया गया था.
फिल्म के लगभग तीन मिनट लंबे ट्रेलर में सबसे पहले कुछ शॉट्स में बाबासाहब आंबेडकर की एक मूर्ति है. उसके बाद फिल्म तीन लड़कियों की रेप और हत्या की घटना और उनके संभावित कारणों की बात करता है. पहली नजर में कुछ शॉट्स बदायूं गैंगरेप और हत्या, ऊना में दलितों पर हमले की घटना, इत्यादि से प्रेरित लगते हैं. ट्रेलर में जिक्र है कि लड़कियों के साथ सिर्फ इस वजह से गैंगरेप और उनकी हत्या की गई क्यों कि वे अपनी मजदूरी में महज तीन रुपये बढ़ाने की मांग कर रही थीं.
फिल्म के ट्रेलर में बाबासाहब आंबेडकर की उस लाइन को लिया गया है जिसमें उन्होंने लोगों से प्रथम और अंतिम भारतीय होने की बात कही थी. यह रोचक है कि ट्रेलर में आंबेडकर की अनेकों क्रांतिकारी बातों में से सिर्फ इस लाइन को इस्तेमाल किया है. यह देखना बाकि है कि फिल्म आंबेडकर के दूसरे विचारों का इस्तेमाल करती है या फिर फ़िल्मकार के हिसाब से कुछ सुविधाजनक विचारों तक ही सीमित रहती है.
दरअसल, फिल्म की शुरुआत में ही हरिजन और बहुजन शब्द को जिस तरह इस्तेमाल किया गया है, वह दोनों को एक ही खांचे में फिट करता नजर आता है. लेकिन दोनों शब्दों में बहुत ही ज्यादा फर्क है. हरिजन जहां गांधी के दर्शन पर आधारित है जो ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म में ही दलितों को फीट करने की बात करता है और यह शब्द दलितों पर थोपा गया है. दूसरी ओर बहुजन शब्द दलितों को पिछड़ी जातियों से जोड़ते हुए उनके सामूहिक चेतना और प्रतिरोध से जुड़ा हुआ शब्द है. इससे पहले अनुभव सिन्हा मुल्क जैसी फिल्म बना चुके हैं. मुल्क जहां बस मुसलमानों के प्रति नारेबाजी करती फिल्म नजर आती है, तो उसमें यह दिखाने के लिए कि ‘सभी मुसलमान आतंकी नहीं होते’, कुछ मुसलमानों को आतंकी और भड़काऊ दिखाया गया है. क्या आतंक से इतर तमाम मुसलमानों की आम नागरिक की तरह कोई पहचान नहीं है?
अब आर्टिकल 15 में पूरी कहानी और परिदृश्य क्या है, यह तो फिल्म जारी होने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इसमें यह दर्शाया गया है कि एक ब्राह्मण पुलिस अधिकारी दलित लड़कियों को संविधान के अनुरूप न्याय दिलाने की कोशिश कर रहा है. यहां भी ऑप्रेसर सोसाइटी से ही ‘नायक’ गढ़ने की कोशिश नजर आ रही है. हालांकि ट्रेलर में अन्य दलित पात्र भी नजर आ रहे हैं. एक पुलिस कर्मचारी के अलावा नीले रंग का गमछा पहना एक संभवतः दलित-बहुजन पात्र (जीशान अयूब) नजर आता है. अब यह तो फिल्म रीलिज होने के बाद ही पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगा कि वह दलितों और आर्टिकल 15 की चेतना पर कितनी खरी उतरती है.
फिर भी हाल के वर्षों में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं जिस तरह से बढ़ी हैं, उस लिहाज से यह फिलहाल मौजूं फिल्म नजर आ रही है. मुख्यधारा की हिन्दी सिनेमा में जिस तरह दलित बिल्कुल गायब रहते हैं, ऐसे में यह फिल्म कम-से-कम उन पर बात करती तो नजर आ ही रही है. हालांकि यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दलितों ने अपने शोषण के खिलाफ खुद संघर्ष किया है. उन्हें जो भी हासिल हुआ है वह उनके अपनी इन्हीं सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों के जरिए हुआ है. दलित प्रतिरोध और आंदोलन हाल के वर्षों में भी राष्ट्रीय पटल पर छाया रहा है. अब फिल्म इस चेतना को क्या जगह दे पाई है, 28 जून को ही स्पष्ट हो पाएगा जब यह फिल्म रिलीज होगी. उसके बाद ही पता चल पाएगा कि फिल्म इन मुद्दों से कितना न्याय कर पाती है.
फिल्म की शूटिंग लखनऊ में हुई है. फिल्म में आयुष्मान खुराना लीड रोल में एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे है. उनके साथ इस फिल्म में ईशा तलवार, सायानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, जीशान अय्यूब इत्यदि भी हैं. फिल्म 28 जून को थिएटरों में रिलीज़ होगी. उसके पहले 20 जून को लन्दन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म का पहला प्रदर्शन होगा.
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