हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पासवान जहां नाराजगी के बावजूद रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस के पक्ष में खड़े नजर आते हैं, वहीं रविदास जाति राजद उम्मीदवार शिवचंद्र राम के पक्ष में.
सरोज कुमार

करीब तीन साल से पटना और हाजीपुर के बीच छोटी गाड़ियों के आवागमन के लिए गंगा नदी पर पीपा पुल बनाया गया है. यह महात्मा गांधी सेतु के ठीक बगल में है. इस पीपा पुल के जरिए पटना से हाजीपुर में प्रवेश करते ही महात्मा गांधी सेतु के नीचे दाहिनी तरफ झोपड़ियों से बने कई सारे घर हैं. यहां पहुंचते ही कुछ पुरुष और महिलाएं अपनी झोपड़ियों के बाहर बैठी मिल जाती हैं. उन्हीं में से एक राधे पासवान बताते हैं कि वे लोग राघोपुर के जहांगीरपुर नामक जगह से यहां अस्थायी रूप से बस गए हैं. दरअसल, जहांगीरपुर में बाढ़ की वजह से कटान होने के बाद ये सभी यहां आकर रहने लगे.
यहां रह रहे ये सभी लोग पासवान समुदाय के हैं और इस दलित समुदाय को लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का प्रमुख समर्थन आधार माना जाता है. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पासवान अच्छी-खासी संख्या में हैं और रामविलास पासवान यहां कई लोकसभा चुनावों से जीत दर्ज करते आ रहे हैं. हालांकि 2009 में वे यहां मामूली अंतर से हार गए थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को दो लाख से भी ज्यादा वोट से हरा दिया था. इस बार उन्होंने अपने भाई पशुपति कुमार पारस को उतारा है. लेकिन यहां अस्थायी रूप से बसे पासवान समुदाय की समस्या पर किसी का ध्यान नहीं गया. राधे पासवान कहते हैं, “हम लोगों के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं की गई है. कोई खेत (जमीन) वाला आएगा और कहेगा कि यहां से अपनी झोपड़ियां उखाड़कर ले जाओ तो हम कहां जाएंगे?” उन्हीं के साथ बैठे एक बुजुर्ग बताते हैं, “हमने रामविलास पासवान को अपने हाथों से आवेदन दिया था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.”

यहां बैठी महिलाएं भी यही समस्याएं सुनाती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं के सवाल पर एक महिला ने कहा, “हमें तो कोई योजना का लाभ नहीं मिला. हमारे हित में कोई काम हो तो क्यों न वोट देंगे.” हालांकि रामविलास पासवान और सरकार से इन मुद्दों पर नाराजगी के बावजूद इनमें से अधिकतर ने रामविलास के प्रति ही अपने चुनावी समर्थन जताया. राधे पासवान कह पड़ते हैं, “दुनिया मर रहा है जात के लिए तो भला हम क्यों ने अपनी जात को देखें.”
ऐसा ही हाल हाजीपुर के पासवान चौक से करीब 3 किलोमीटर दूर रामविलास पासवान के सांसद आदर्श ग्राम सुल्तानपुर में नजर आता है. यहां एक छोटी-सी दुकान चले रहे प्रमोद पासवान भी रामविलास पासवान के प्रति ही अपना समर्थन जताते हैं. हालांकि थोड़ा कुरेदने पर वे खुलते हैं. फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि उसने दलितों के आरक्षण को क्षति पहुंचाने का काम किया है और सवर्णों को आरक्षण दे दिया है. सुल्तानपुर में थोड़ी नाराजगी के बावजूद कई महिलाएं और पुरुष रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस को ही वोट देने की बात कहते हैं. एक युवा कहता है, “हम मोदी को नहीं पहचानते, हम रामविलास को पहचानते हैं.”
इन सबके विपरीत यहां के 23 वर्षीय चंद्र मोहन कुमार लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को वोट देने की बात कहते हैं. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पशुपति पारस को राजद के शिवचंद्र राम चुनौती दे रहे हैं. चंद्र मोहन कहते हैं, “लालू यादव के राज में हम शान से जीते हैं. वहीं, चुनाव होना रहता है तभी चिराग पासवान (रामविलास पासवान के बेटे) यहां नजर आते हैं. वरना नहीं.”
लेकिन सभी दलित जातियां पशुपति पारस के साथ नहीं!
लेकिन राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले तेरसिया में अलग ही माहौल है. यहां के रविदास/चमार समुदाय के रामप्रवेश दास सरीखे लोग राजद उम्मीदवार शिवचंद्र राम को वोट देने की बात कहते हैं. रविदास/चमार भी एक दलित जाति है और शिवचंद्र राम इसी समुदाय के हैं. हालांकि रामप्रवेश दास कहते हैं, “जाति की बात नहीं है. शिवचंद्र राम ने विधायक रहते हुए बेहतर तरीके से विकास कार्य किया है. इसलिए उनके काम पर मैं उन्हें समर्थन दे रहा हूं.” शिवचंद्र राम इसी लोकसभा क्षेत्र में आने वाले राजापाकर विधानसभा क्षेत्र से 2015 में विधायक चुने गए हैं. रामप्रवेश के ही समुदाय की कुछ अन्य महिलाएं और पुरुष भी शिवचंद्र राम को वोट देने की बात कहते हैं. शिव दयाल दास भी ऐसे ही एक शख्स हैं. इक्का-दुक्का लोग ही यह कहते हैं कि अभी नहीं बताएंगे कि वे किसका समर्थन कर रहे हैं. यहां भी जाति फैक्टर काफी महत्वपूर्ण नजर आता है. सुधांसु कुमार नामक युवा खुले तौर पर जाति की वजह से शिवचंद्र राम को वोट देने की बात कहते हैं. वे कहते हैं, “जब पूरे देश में सब जाति देख रहे हैं, तो हम क्यों न देखें.”
हालांकि रामप्रवेश दास यह भी कहते हैं कि अगर रामविलास पासवान यहां से फिर खड़े होते तो वे उन्हें ही वोट देते. रामप्रवेश दास का कहना है कि रामविलास पासवान ने वहां विकास के कार्य किए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने भाई को उतार दिया है, इसलिए वे लोग राजद प्रत्याशी की ओर मुड़ गए हैं. वे यह भी कहते हैं कि अगर शिवचंद्र राम नहीं होते तो उनका वोट बसपा प्रत्याशी को जाता. दरअसल, बसपा भी हाजीपुर में चुनाव लड़ रही है.
जाहिर है, रामविलास पासवान के इस बार नहीं उतरने से उनके इस गढ़ में दलित वोटों में बंटवारा होता दिख रहा है. ऐसे में भले ही यहां पासवान वोटर अच्छी-खासी संख्या में हैं पर अन्य जातियों के वोट हासिल करना अब और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. विभिन्न समाचार रिपोर्ट्स और अनुमान के मुताबिक, यहां पासवान वोटर करीब ढाई लाख हैं और अन्य दलित जातियां (कुल मिलाकर) करीब इतनी संख्या में हैं. सवर्ण वोट भी यहां करीब ढ़ाई लाख होने का अनुमान है.
वहीं, यादव इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक हैं, जो तीन लाख से भी ज्यादा बताए जाते हैं. राघोपुर के तेरसिया के चंदन कुमार यादव कहते हैं, “यहां माहौल राजद के पक्ष में है. मोदी सरकार ने कोई अच्छा काम नहीं किया है. गरीब मारे जा रहे हैं.” राघोपुर से तेजस्वी यादव विधायक हैं. जाहिर है, यादव वोटर राजद के पक्ष में ही नजर आता है, जिसकी कमान फिलहाल तेजस्वी यादव ने संभाल रखी है. यादव वोटरों के साथ-साथ मुसलमान वोट भी राजद के पक्ष में झुका नजर आता है. इसके अलावा, हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा क्षेत्रों में से एक सीट भाजपा, एक लोजपा, दो जदयू और चार राजद के कब्जे में हैं. जाहिर है, पशुपति पारस के पास अपने भाई रामविलास पासवान की विरासत को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है और इससे रामविलास पासवान की साख भी जुड़ा हुआ है. लेकिन इस बार उनके सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं.
(लेखक फ्रीलांस पत्रकार हैं तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में न्यू मीडिया और दलित विषय पर रिसर्च कर रहे हैं.)