राजस्थान में 6 मई को 12 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव होने थे जिनमें अलवर समेत 4 एससी रिजर्व और एक एसटी रिजर्व सीटें शामिल थीं. यही वजह है कि पुलिस-प्रशासन ने मामले को दबाए रखा
सरोज कुमार

राजस्थान के अलवर की गैंगरेप पीड़िता और उसके परिजन जब 30 अप्रैल को आखिरकार हिम्मत करके पुलिस अधीक्षक (एसपी) ऑफिस पहुंचे. ठीक उसी दिन वहां से महज करीब 70 किलोमीटर दूर दौसा के बांदीकुई में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार के लिए जनसभा कर रहे थे. दरअसल, 26 अप्रैल को अलवर के थानागाजी इलाके में गैंगरेप की शिकार हुई दलित समुदाय की पीड़िता और उसके पति को आरोपी लगातार वीडियो वायरल कर देने की धमकी दे रहे थे. 30 अप्रैल को पुलिस अधीक्षक ने पीड़ित परिवार को कार्रवाई का आश्वासन देकर थानागाजी पुलिस स्टेशन भेज दिया.
लेकिन पीड़ितों का आरोप है कि थानागाजी के एचएसओ ने 6 मई के लोकसभा चुनाव का हवाला देकर एफआइआर दर्ज नहीं की. आरोप है कि एचएसओ ने कहा कि सभी पुलिसवालों की चुनाव में ड्यूटी लगी है इसलिए कुछ दिनों के बाद इस मामले में कार्रवाई हो पाएगी. जाहिर है, पुलिस ने इस संगीन अपराध को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई. पीड़ित 2 मई को फिर एफआइआर दर्ज कराने गए, तब जाकर मामला दर्ज हुआ. लेकिन हैरानी की बात कि एक दिन बार 3 मई को पीड़िता का मेडिकल किया गया. जाहिर है, पुलिस-प्रशासन ने लगातार इस मामले में देरी की. इस केस में जिस तरह की देरी और उदासीनता बरती गई, वह न केवल पुलिस-प्रशासन बल्कि राज्य की कांग्रेस सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करती है.
छह मई को अलवर और चार एससी रिजर्व लोकसभा सीटों में था चुनाव
पुलिस भले ही चुनाव की वजह से पुलिसकर्मियों की कमी का हवाला देकर पीड़ितों को टाल रही थी. लेकिन आरोप है कि कांग्रेस सरकार ने जानबूझ कर मामले को दबाए रखा ताकि 6 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में उसे किसी तरह का सियासी नुकसान न हो. दरअसल, 6 मई को राजस्थान में (राज्य में दूसरे और आखिरी चरण) के लोकसभा चुनाव में कुल 12 सीटों पर मतदान होना था. इसमें अलवर समेत दलितों (एससी) के लिए सुरक्षित चार सीटों पर चुनाव होने थे. इन एससी रिजर्व सीटों में गंगानगर, बीकानेर, भरतपुर और करौली-धौलपुर शामिल हैं. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सुरक्षित दौसा में भी इसी दिन चुनाव होने थे. जाहिर है, दलित (एससी) समुदाय की महिला के साथ इस तरह के वीभत्स गैंगरेप की वारदात की जानकारी फैलने पर इस समुदाय में राज्य में सत्तासीन कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश उमड़ता, जैसा कि अब भी दिखायी दे रहा है. इससे कांग्रेस को चुनाव में सियासी रूप से परेशानी हो सकती थी. वैसे भी दलितों-आदिवासियों की भाजपा से नाराजगी ने पिछले साल राज्य में कांग्रेस की सत्ता वापसी में अहम भूमिका निभाई है.
दूसरा आरोप यह है कि गैंगरेप के आरोपी गुर्जर समुदाय से आते हैं औऱ अगर उन पर तत्काल कार्रवाई होती तो कांग्रेस के लिए सियासी तौर पर इस ऐंगल से भी नुक्सान उठाना पड़ सकता था. लोगों का आरोप है कि राजनीति से लेकर पुलिस-प्रशासन में गुर्जरों का दबदबा होने की वजह से स्थानीय गुर्जर दलितों पर अत्याचार करके बच निकलते हैं. राज्य के उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट गुर्जर समुदाय के ही हैं और वे पिछले साल विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल थे. राजस्थान में दलितों की आबादी करीब 18 प्रतिशत है, तो गुर्जरों की आबादी करीब 9 प्रतिशत बताई जाती है. जाहिर है, इन तबकों की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है. शायद यही वजह है कि सरकार ने इस मुद्दे पर एकदम चुप्पी साधे रखा.
हालांकि यह भी आरोप लग रहे हैं कि आरोपी गुर्जर लड़कों के गैंग को भाजपा नेताओं की शह मिली हुई है. दरअसल, आरोप हैं कि भाजपा सरकार में मंत्री रहे हेम सिंह भड़ाना ऐसे लोगों को वहां शह दिया हुआ था, जिसकी वजह से पुलिस भी उनपर कार्रवाई नहीं करती थी.
दलितों के आक्रोश और चुनाव के बाद आई तेजी
लेकिन 4 मई को गैंगरेप का वीडियो आरोपियों की ओर से वायरल कर दिए जाने के बाद मामले का खुलासा हो गया. इसके बाद दलितों ने अपना आक्रोश जताना शुरू किया. लेकिन फिर भी पुलिस तब तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर पाई. धीरे-धीरे दलितों ने इस मामले को उठाना शुरू किया. लेकिन सरकार 6 मई के लोकसभा चुनाव के बाद सक्रिय हुई. किरोड़ी लाल मीणा और बसपा विधायकों समेत विभिन्न नेताओं ने भी इस मामले में कार्रवाई की मांग की. आखिरकार सरकार ने 7 मई को पुलिस अधीक्षक को हटाकर उन्हें एपीओ (Awaiting Posting Order) किया और आरोपियों की धड़पकड़ तेजी से शुरू हुई. जाहिर है, प्रशासन और सरकार चुनाव खत्म होने और फिर दलितों के आक्रोशित होने के बाद होश में आई. इससे संकेत मिलता है कि वह चुनाव तक कुछ कार्रवाई नहीं करना चाहती थी.
लेकिन दलित कांग्रेस की इस मंशा को समझ रहे हैं और उनमें आक्रोश थमा नहीं है. तभी 10 मई को दलित समूहों ने जयपुर में विरोध-प्रदर्शन और बंद का आयोजन किया. इस मामले पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भी बोल 10 मई को फूटे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अब जाकर कांग्रेस एसी विभाग के अध्यक्ष नितिन राउत को राजस्थान भेजा. जबकि राहुल गांधी 2 मई को भी राजस्थान में पूरी सक्रियता से चुनावी रैलियां कर रहे थे. जाहिर है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब भले उचित कार्रवाई और कमिश्नर की इंक्वायरी की बात की है, लेकिन यह पूरा मामला दिखाता है कि किस तरह उनकी सरकार ने दलित महिला के साथ इस गैंगरेप की जघन्य वारदात को 6 मई के लोकसभा चुनाव तक दबाने की कोशिश की.