मायावती व राबड़ी देवी जैसी महिला नेता उन्हें क्यों नहीं रास आती हैं?

    भारतीय समाज की तरह राजनीति को भी पुरुषों ने हमेशा अपने कब्जे में रखने की कोशिश की है. लेकिन मायावती और राबड़ी देवी जैसी महिला नेताओं ने वास्तव में पुरुषों के इस वर्चस्व को चुनौती दी है. इसी कारण उनके विरुद्ध कुंठाजनित टिप्पणियां की जाती रही हैं.

    तहसीन मजहर

    फोटो: राबड़ी देवी के फेसबुक पेज से साभार

    हाल ही में आज तक चैनल के एक संपादक निशांत चतुर्वेदी ने ट्विटर पर राष्ट्रीय जनत दल (राजद) की नेता राबड़ी देवी की मजाक उड़ाने की कोशिश की. उसने राबड़ी देवी की ट्विटर पर उपस्थिति का उपहास उड़ाने के मकसद से लिखा, “अच्छा जी राबड़ी देवी भी ट्वीट करती हैं. कोई इनसे बोले कि ये बस तीन बार ट्विटर बोल कर बता दें.” इससे निशांत चतुर्वेदी की ही मानसिकता का पता चल जाता है. यह न केवल निशांत चतुर्वेदी का वर्गीय बल्कि जातिगत कुंठा और पूर्वाग्रह का भी परिचायक है. इसी तरह भाजपा नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने भी राबड़ी देवी को घूंघट में रहने की सलाह दी थी. यह दिखाता है कि दरअसल इन लोगों में राबड़ी देवी के प्रति कितना दुराग्रह और कुंठा भरी पड़ी है. राबड़ी देवी ने अश्विनी चौबे को ठीक ही जवाब दिया कि ये सभी महिला विरोधी घृणित मानसिकता के लोग हैं. निशांत चतुर्वेदी की टिप्पणी यह भी दिखाता है कि कथित इलीट तबके में भी महिलाओं के प्रति कैसे पूर्वाग्रह भरे हैं. क्या कम पढ़ी-लिखी महिला को राजनीति या फिर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने का अधिकार नहीं है? ऐसा उन्हें ही लग सकता है जो हर जगह बस खुद का कब्जा चाहते हैं.

    इससे पहले निशांत चतुर्वेदी बसपा नेता मायावती पर भी गंभीर आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं. यह दर्शाता है कि निशांत के मन में खासकर दलित-पिछड़ी जाति की महिलाओं के प्रति कितनी कुंठा भरी हुई है. यह आरक्षण को लेकर निशांत चतुर्वेदी की टिप्पणी से भी स्पष्ट हो जाता है. एक वजह यह भी है कि इन महिला नेताओं ने राजनीतिक तौर पर भी एक मुकाम हासिल किया है. खासकर, मायावती ने तो बसपा जैसी पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है और चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं. वहीं, तात्कालिक परिस्थितियां भले जो रही हों, लेकिन राबड़ी देवी एक गृहिणी से आगे बढ़कर बिहार की मुख्यमंत्री बनी थीं. भारतीय समाज की तरह राजनीति को भी पुरुषों ने हमेशा अपने कब्जे में रखने की कोशिश की है. लेकिन मायावती और राबड़ी देवी जैसी महिला नेताओं ने वास्तव में किसी न किसी रूप में पुरुषों के इस वर्चस्व को चुनौती दी है. दूसरी बात यह है कि ये दलित और पिछड़ी जाति से आती हैं. यही वजह है कि केवल राजनीतिक विरोधी ही नहीं बल्कि सवर्णों और पुरुषों से भरी मीडिया के निशांत चतुर्वेदी जैसे पत्रकार इन लोगों के प्रति घोर आपत्तिजनक कुंठित टिप्पणियां करते नजर आते हैं.

    (तहसीन मजहर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं)