ये पांच मुद्दे चुनाव आयोग को लेकर सवाल खड़े करते हैं

    अब चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के पत्र ने चुनाव आयोग को लेकर व्यक्त की जा रही आशंका को बल दिया है. जानें ऐसे पांच कारण जो चुनाव आयोग को लेकर सवाल खड़े करते हैं.

    द मार्जिन टीम

    मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्त अशोक लवासा तथा सुशील चंद्रा (फोटोः साभार आयोग का फेसबुक पेज)

    विपक्षी नेताओं की ओर से लोकसभा चुनावों के दौरान लगातार चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. अब चुनाव आयोग के भीतर ही दो-फाड़ ने विपक्षी दलों के आरोपों की पुष्टि कर दी है कि आयोग में सबकुछ ठीकठाक नहीं है.

    मुख्य चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की असहमति


    कांग्रेस-बसपा समेत विभिन्न विपक्षी दल चुनाव आयोग पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह भाजपा की कठपुतली की तरह काम कर रहा है. उनका आरोप था कि आयोग प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत प्रमुख भाजपा नेताओं के उल्लंघनों की अनदेखी कर रहा है. अब खुद अशोक लवासा ने पत्र लिखकर विपक्षी आरोपों को बल प्रदान कर दिया है. दरअसल, अशोक लवासा ने विभिन्न आरोपों पर मोदी और शाह को क्लीनचिट दिए जाने पर अपनी असहमति दर्ज कराई थी. लेकिन उनकी असहमति को आयोग ने अपने आधिकारिक फैसलों में दर्ज नहीं किया. लवासा ने अपनी टिप्पणियों को आधिकारिक रिकॉर्ड में शामिल करने की मांग करते हुए कहा है कि अगर ऐसी व्यवस्था नहीं की गई तो आयोग के बैठकों में उनके शामिल होने का कोई मतलब नहीं है.


    मोदी-शाह को खुली छूट तो विपक्षी दलों पर धड़ाधड़ कार्रवाई


    अपने भाषण में मुसलमान समुदाय का वोट न बंटने देने की कथित अपील करने पर चुनाव आयोग ने बसपा प्रमुख मायावती पर 48 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया था. इसी तरह सपा नेता आजम खान पर भी जया प्रदा पर कथित कमेंट को लेकर प्रतिबंध लगाया गया था. लेकिन दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने 9 अप्रैल को लातूर में बालाकोट स्ट्राइक और सेना के नाम पर पहली बार के वोटरों को वोट देने की अपील की थी. 25 अप्रैल को वाराणसी में भी मोदी अपने भाषण में सेना के नाम पर वोट मांगते नजर आए थे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वायनाड से लड़ने को लेकर भी मोदी ने मुस्लिम समुदाय का जिक्र किया था. लेकिन इन सबकी शिकायत होने के बावजबद आयोग ने मोदी पर कोई कार्यवाई नहीं की, जबकि आयोग ने अपने एक निर्देश में वोट के लिए सेना के नाम का इस्तेमाल नहीं करने का आदेश दिया था. मोदी और शाह के खिलाफ विपक्ष ने आयोग में ढेर सारी शिकायतें कीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की धमकी के बाद ही आयोग उन शिकायतों पर फैसला देने को राजी हुआ. इतना ही नहीं, आयोग ने 8 मई तक ही मोदी को करीब आठ मामलों में क्लीनचिट दे दी. जाहिर है, आयोग जिस तरह से मोदी-शाह को क्लीनचिट दे रहा है, उस पर संदेह उत्पन्न हो रहे हैं.

    बंगाल का विवाद


    चुनाव आयोग ने अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल में 20 घंटे पहले ही चुनाव प्रतिबंध पर प्रतिबंध लगा दिया. इसको लेकर भी विपक्षी दलों ने आयोग पर सवाल उठाए. तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने कहा कि आयोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है. दरअसल, बंगाल में मोदी की रैली पूरी होने के बाद ही आयोग ने बंगाल में चुनाव प्रचार पर अपना प्रतिबंध लागू किया. ऐसे में सवाल उठे कि आयोग ने मोदी की रैली के पहले क्यों नहीं प्रतिबंध लगाया. आरोप लगे कि उसने मोदी के प्रचार या रैली पर तो रोक नहीं लगाई लेकिन वहां मजबूत दिख रहीं ममता बनर्जी के प्रचार पर अंकुश लगाने की कोशिश की. ममता के चहेते अफसरों को भी आयोग ने तत्काल हटा दिया, जबकि भाजपा या मोदी-शाह के चहेते अफसरों के खिलाफ आयोग पूरे चुनाव के दौरान कोई कार्रवाई नहीं करता दिखा.

    चुनावों के दौरान गड़बड़ियां

    एक वायरल वीडियो में फरीदाबाद के एक मतदान केंद्र पर एक शख्स महिलाओं के वोट को प्रभावित करता नजर आया. एक आदिवासी क्षेत्र से ऐसा एक और वीडियो वायरल हुआ है. फरीदाबाद में ऐसे दो मामले की शिकायतों के बाद आयोग ने आरोपी भाजपा एजेंट और अफसर पर कार्रवाई की है. लेकिन ये मामले सवाल उठाते हैं कि क्या आयोग ऐसी गड़बड़ियों को रेक पाने में नाकाम रहा है? आयोग के पास मैनपावर की कमी हो सकती है और सरकार के कर्मचारियों के जरिए ही वह चुनाव करा पाती है. लेकिन इससे सवाल उठता है कि जो आयोग मोदी-शाह को लगातार क्लीनचिट दे रहा है, वह क्या भाजपा शासित प्रदेशों और केंद्र के अफसरों या एजेंट्स के जरिए ऐसी हो रही गड़बड़ियों को रोक पा रहा है? यूपी के कई जगहों पर विपक्षी नेताओं ने पुलिस-प्रशासन पर भाजपा के साथ मिल कर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश का आरोप लगाया है. इसी तरह, बिहार के मुजफ्फरपुर में ईवीएम और वीवीपीएटी को संबंधित अफसर के द्वारा निजी होटल में रखने तक का मामला सामने आया है.

    ईवीएम और वीवीपीएटी के मिलान का सवाल


    देश की 21 विपक्षी दलों ने वीवीपीएटी-ईवीएम की 50 फीसदी पर्चियों के मिलान करने की मांग की थी लेकिन आयोग ने इसे खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने मैनपावर की कमी और इससे चुनाव के रिजल्ट में करीब पांच-छह दिन देरी होने का भी तर्क दिया था. लेकिन सवाल है कि जहां देश के लोकतंत्र का सवाल है, वहां रिजल्ट के लिए महज पांच-छह दिन की देर को क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी विपक्षी दलों की मांग खारिज कर दी है. लेकिन इससे आयोग की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं. ईवीएम को लेकर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं और वीवीपीएटी मशीन से उसके पर्चियों के मिलान से चुनाव की पारदर्शिता बढ़ती, लेकिन आयोग इसको लेकर गंभीर नहीं दिख रहा. आयोग ने हर विधानसभा क्षेत्र (कुछ विधानसभा क्षेत्रों को मिलकर एक लोकसभा क्षेत्र बनता है) की महज पांच वीवीपीएटी की पर्चियों का मिलान ईवीएम से करने का फैसला लिया है.