बहुत कम लोगों के ध्यान में होगा कि सपा प्रवक्ता घनश्याम तिवारी बिहार में सपा से चुनाव लड़ रहे हैं, पर क्राउडफंड के मामले में वे कन्हैया और आतिशी के बाद तीसरे नंबर पर हैं. आवरडेमोक्रेसी के जरिए राजनीतिक कैंपेन के तहत सबसे ज्यादा राजनीतिक फंड जुटाने वालों में कथित ऊंची जातियों और वर्ग के लोग शामिल हैं.
सरोज कुमार

इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार का काराकाट लोकसभा क्षेत्र बहुत ज्यादा चर्चित सीट नहीं है. मीडिया में इसकी थोड़ी-बहुत चर्चा हुई भी तो पूर्व राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की सीट के तौर पर. इसी तरह बिहार में समाजवादी पार्टी (सपा) के चुनाव लड़ने की कोई चर्चा नहीं है. हालांकि काराकाट लोकसभा सीट पर इस बार सपा की ओर से घनश्याम तिवारी को टिकट दिया गया है. घनश्याम तिवारी सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, पर उनके चुनाव लड़ने की बात किसी भी तरह की मीडिया में कोई सुर्खियां नहीं बटोर सकी है.
सुर्खियों में न रहने के बावजूद एक मामले में घनश्याम तिवारी अव्वल नजर आ रहे हैः वह है क्राउडफंडिंग संस्था आवर डेमोक्रेसी से फंड जुटाना. दरअसल, सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार और आम आदमी पार्टी (आप) की आतिशी के बाद घनश्याम तिवारी इसके जरिये राजनीतिक कैंपेन के तहत फंड जुटाने में सबसे आगे हैं. यह देखना इसलिए भी दिलचस्प है कि बहुतों की ओर से यह तर्क दिया जाता है कि जो उम्मीदवार या उसका चुनावी कैंपेन या सोशल मीडिया कैंपेन सबसे बेहतर हो या सुर्खियां बटोरे, वह ज्यादा फंड जुटाता है. लेकिन तिवारी का चुनावी कैंपेन ज्यादा सुर्खियां न बटोरने के बावजूद 11 मई तक करीब 30 लाख रुपए जुटाने में कामयाब रहा है.
कौन हैं फंड जुटाने वाले टॉप पांच शख्सियत
आवर डेमोक्रेसी के जरिए सबसे पहले बेगूसराय से सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार 70 लाख रुपया जुटाने का अपना लक्ष्य पूरा करने में सफल रहे. इसके बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार आतिशी भी 70 लाख जुटाने में कामयाब रहीं. इन दोनों के बाद घनश्याम तिवारी ने 11 मई तक 27 लाख 19 हजार रुपए जुटा लिया. राजनीतिक कैंपेन के तहत फंड जुटाने वाले टॉप छह में तीन आम आदमी पार्टी के नेता हैं. इसके नेता दिलीप पांडे 8,21,164 रुपए तो राघव चड्डा 5,03,615 जुटा चुके हैं. जाहिर है, ये सभी आवर डेमोक्रेसी के जरिए सबसे ज्यादा राजनीतिक फंड जुटाने वाले नेता हैं. दिलीप पांडे और राघव चड्डा से ज्यादा सिर्फ आर्टिस्ट यूनाइट नामक समूह ने करीब 11 लाख 54 हजार का फंड जुटाया. इस समूह ने हालांकि मार्च में लाल किले पर एक कल्चरल प्रदर्शन के लिए यह रकम जुटाया था.
दलित–आदिवासी–ओबीसी इस मामले में पीछे
आवर डेमोक्रेसी के जरिये राजनीतिक कैंपेन के तहत फंड जुटाने के लिए कई सारे दलित, आदिवासी और पिछड़े नेताओं ने भी कैंपेन क्रिएट कर रखा है. लेकिन ये सभी पर्याप्त फंड हासिल करने में कामयाब नहीं हो सके हैं. उदाहरण के लिए दलितों का बहुचर्चित समूह भीम आर्मी भी महज 6,245 रुय जुटा सकी है, जबकि उसका लक्ष्य 2 लाख रु. जुटाने का था. दरअसल, क्राउडन्यूजिंग ने भीम आर्मी और इसके नेता चंद्रशेखर के लिए फंड कैंपेन क्रिएट किया था. इसी तरह त्रिशुर के बसपा उम्मीदवार निखिल चंद्रशेखरन एक रुपया भी नहीं जुटा पाए तो गोपालगंज से बसपा के युवा दलित उम्मीदवार कुणाल किशोर महज 46 हजार रु. तो बक्सर से बसपा उम्मीदवार सुशील कुशवाहा चंद रुपए ही जुटा पाए. इसी तरह कई दलित-आदिवासी-पिछड़े नेता हैं, जो बहुत ही कम फंड जुटा सके हैं.
दलितों-पिछड़ों में बस दो नाम है जिन्होंने ठीक-ठाक रकम जुटाई है. इनमें रोहित वेमुला के दोस्त और बसपा उम्मीदवार पेडापुडी विजय कुमार करीब 4 लाख रु. और दूसरे आरा से भाकपा माले के उम्मीदवार राजू यादव करीब 3 लाख रु. जुटा पाए. विजय कुमार जहां रोहित वेमुला की वजह से भी सुर्खियों में रहे, वहीं राजू यादव के लिए भी बहुजनों के बीच फंड को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा देखी गई.
जातिगत और वर्गीय सामाजिक पूंजी
लेकिन आखिर क्या वजह है कि बाकी सारे दलित-आदिवासी-पिछड़े बहुत ही कम रकम जुटा पाए जबकि टॉप फंड जुटाने वालों में केवल कथित ऊंची जाति के नेता शामिल हैं. चुनावी कैंपेन, सोशल मीडिया कैंपेन और उम्मीदवार की लोकप्रियता वजहें हो सकती हैं, लेकिन घनश्याम तिवारी और भीम आर्मी का उदाहरण यह संकेत दे देता है कि बस ये चीजें काफी नहीं हैं. मसलन, घनश्याम तिवारी सुर्खियों में नहीं रहे, उनका कैंपेन भी ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है, लेकिन वे यहां फंड जुटाने में टॉप तीन में हैं. वहीं भीम आर्मी के पिछले करीब दो साल में काफी सुर्खियां बटोरने के बाद भी महज 6 हजार रु. जुटा पाता है.
सामाजिक पूंजी से आर्थिक पूंजी तक
यह फंड जुटाने वाले के व्यक्तिगत और सामाजिक नेटवर्क पर भी बहुत निर्भर करता है तथा यह जाति से ही निर्धारित होता है. भूमिहार समुदाय से आने वाले कन्हैया कुमार खुद को बहुत गरीब मां का बेटा प्रोजेक्ट करते रहे औऱ आवर डेमोक्रेसी पर 70 लाख रु. जुटाने वाले पहले शख्स बन गए. उनको एक मशहूर कोचिंग मालिक से सबसे ज्यादा पांच लाख रु. फंड मिले. 70 लाख रु जुटाने वाली आतिशी भी राजपूत समुदाय से हैं और आप नेता तथा डिप्टी-सीएम मनीष सिसोदिया ने उनकी इस जातिगत पहचान को खुलेआम प्रोजेक्ट किया था. इसी तरह घनश्याम तिवारी, दिलींप पांडे और राघव चड्डा की भी जाति स्पष्ट है. आम आदमी पार्टी के नेताओं से एक और बात जुड़ी हुई है कि ये भी एनजीओ कल्चर से निकले हैं और इस वजह से क्राउड फंडिंग में माहिर रहे हैं. एनजीओ सेक्टर में भी जाहिर तौर पर ऐसे ही लोगों का वर्चस्व है.
सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का फर्क
इन सभी में वर्ग (क्लास) को लेकर भी एक समानता दिखाई देती है. आतिशी, घनश्याम तिवारी और राघव चड्डा विदेश में भी पढ़ाई कर चुके हैं. घनश्याम एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर चुके हैं. दिलीप पांडे भी हांगकांग में आइटी-एक्सपर्ट के बतौर काम कर चुके हैं. जाहिर है कि ये सभी अच्छे-खासे आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से है. ये सभी वर्ग (क्लास) के हिसाब से भी इलीट समूह में नजर आते हैं. यह भी देखा जाना चाहिए कि इन्हें फंड देने वाले भी संपन्न समूह से नजर आते हैं. मसलन, आतिशी, घनश्याम, दिलीप और राघव के टॉप दानकर्ताओं में अधिकतम 1 लाख रु. या उससे अधिक रकम देने वाले शामिल हैं. किसी एक दानकर्ता से कन्हैया कुमार को तो सर्वाधिक 5 लाख रु. तक मिल गए. इससे संकेत मिलता है कि जातिगत और आर्थिक रूप से संपन्न लोगों का समर्थन इन्हें खूब मिला.
इन चीजों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि सामाजिक संपत्ति जाति और वर्ग के हिसाब से तय होती है. यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि क्यों किसानों को सरकार की ओर से अनुदान या कर्ज माफी या फिर वंचितों के लिए कल्याणकारी योजनाओं, सब्सिडी आदि पर इलीट तबका काफी नाराजगी जताता है. वहीं बड़े पूंजीपतियों को धड़ल्ले से कर्ज में भारी रियायत मिल जाती है.
जाहिर है, आवरडेमोक्रेसी.इन के तहत सबसे ज्यादा फंड जुटाने वाले लोग द्विज जातियों से हैं. क्लास के हिसाब से भी इलीट हैं. वहीं दलित-पिछड़े-आदिवासी जैसे वंचित समूहों के उम्मीदवारों को यहां बहुत कम फंड हासिल हो पा रहा है.