जब 1999 में ओडिशा में ऑस्ट्रेलियाई डॉक्टर ग्राहम स्टेंस और उनके दो छोटे बच्चों को जिंदा जला कर मारा डाला गया था, उस वक्त प्रताप षडंगी बजरंग दल के राज्य प्रमुख थे. उस दर्दनाक हत्याकांड का दोषी भी बजरंग दल का दारा सिंह था.
द मार्जिन टीम

राष्ट्रपति भवन परिसर में जब 30 मई को नरेंद्र मोदी की नई सरकार के मंत्री शपथ ले रहे थे तो ओडिशा के बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र षडंगी के शपथ लेने के दौरान खूब तालियां बजीं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी उनके लिए खूब तालियां बजायी. प्रताप षडंगी की तारीफ में मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और उनकी कथित सादगी को काफी प्रचारित किया गया. एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थान ने उन्हें ‘साइकिल पर चलने वाला’ तो द प्रिंट ने ‘झोपड़ी में रहने वाला’ करार दिया. तमाम मीडिया समूहों में उन्हें इसी तरह प्रोजेक्ट किया गया.

यह हकीकत है कि बालासोर लोकसभा सीट पर प्रताप षडंगी के खिलाफ कांग्रेस और बीजू जनता दल के काफी अमीर प्रत्याशी खड़े थे. लेकिन ऐसा भी नहीं लगता कि वे एकदम ‘गरीब’ हैं या ‘फकीर’ हैं और यही से उठकर वे सांसद बने हैं, जैसा मीडिया उन्हें प्रचारित कर रहा. खबरों की माने तो प्रताप षडंगी एक ब्राह्मण परिवार से आते है. प्रताप सांरगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े विभिन्न संगठनों से लंबे अरसे से जुड़ रहे हैं. वे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े रहे हैं. जाहिर है, इन संगठनों और फिर उनकी पार्टी भाजपा का हर तरह से मजबूत संगठन का साथ उन्हें हमेशा मिला है. इसके अलावा वे 2004 और 2009 में विधायक भी रह चुके हैं. 2014 के एफीडेविट के मुताबिक, उस दौरान उन पर कुल 10 आपराधिक मामले चल रहे थे और उनकी कुल संपत्ति करीब 13 लाख की थी. प्रताप सांरगी के 2019 के चुनावी एफीडेविट के मुताबिक, उनके पास कुल करीब साढें तेरह लाख की संपत्ति है. उनके पास कैश, बैंक बैंलेंस और कंपनियों में शेयर समेत करीब साढें चार लाख की चल संपत्ति है. उनके पास करीब 9 लाख की अचल संपत्ति भी है.
एफीडेविट के मुताबिक, प्रताप षडंगी पर फिलहाल कुल सात आपाराधिक मामले भी दर्ज हैं. ये मामले दंगा भड़काने, धार्मिक भावनाएं भड़काने और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए इकट्ठा होने से जुड़े हैं. जाहिर है, उनका सामाजिक और राजनीतिक सफर इतना सीधा-सादा भी नहीं रहा है.

वहीं, 1999 में ओडिशा में जब ऑस्ट्रेलियाई डॉक्टर ग्राहम स्टेंस और उनके दो मासूम बच्चों को जिंदा जला दिया था, तो उस समय प्रताप षडंगी बजरंग दल के राज्य प्रमुख (स्टेट को-आर्डिनेटर) थे. दरअसल, उस भयानक हत्याकांड का मुख्य दोषी बजरंग दल का ही दारा सिंह था. बजरंग दल और दारा सिंह ने कथित तौर पर ग्राहम स्टेंस पर धर्मांतरण अभियान चलाने का आरोप लगाया था. प्रताप सांरगी भी हिंदुओं के कथित धर्मांतरण के खिलाफ अभियानों में शामिल रहे हैं. ग्राहम स्टेंस और उनके बच्चों की हत्या की जांच के लिए केंद्र सरकार ने जस्टिस जे.पी. वाधवा के नेतृत्व में एक आयोग का भी गठन किया था. उस आयोग ने जून, 1999 में अपनी रिपोर्ट जमा की थी. अप्रैल, 1999 में देश में अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार बन चुकी थी. गोपाल सुब्रह्मण्यम जैसे सदस्यों की असहमति के बावजूद आयोग ने उस हत्याकांड में किसी संगठन (बजरंग दल) की भूमिका होने की बात से इनकार कर दिया था. यहां तक कि प्रताप षडंगी का भी बिना कोई क्रॉस-एक्जामिनेशन किए आयोग ने उनके बयान को स्वीकार कर लिया था कि उस हत्याकांड में बजरंग दल की कोई भूमिका नहीं थी. हालांकि दारा सिंह को 2003 में सीबीआइ की निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया था. विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार प्रताप षडंगी ईसाई संगठनों के खिलाफ द्वेषपूर्ण विचार रखते हैं.