बिहार में इंसेफलाइटिस ने एक बार फिर मासूम बच्चों पर अपना कहर बरपाया है. लेकिन सत्ता के जिम्मेदार नेताओं के बर्ताव से नहीं लगता कि वे बच्चों की मौतों के प्रति गंभीर हैं.
सरोज कुमार

बिहार में इंसेफलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या जिस दिन सौ से भी ज्यादा होने की खबर आई, ठीक उसी दिन भाजपा नेता औऱ बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय क्रिकेट में जीत पर भारतीय टीम के लिए बधाई ट्वीट कर रहे थे. 16 जून की रात उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, “वेल डन टीम इंडिया.” लेकिन यह ‘वेल डन’ स्वास्थ्य मंत्री को तो नहीं ही कहा जा सकता. जिसके विभाग के तहत आने वाले क्षेत्र में महज दो हफ्तों में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई हो, उस मंत्री की जवाबदेही पर तो सवाल खड़े ही होते हैं. बिहार में इंसेफलाइटिस से सबसे ज्यादा प्रभावित रहने वाले मुजफ्फरपुर का दौरा स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने 13 जून को किया, जबकि मुजफ्फरपुर में 1 जून से मौत का सिलसिला शुरू हो चुका था. पहली जून को ही इंसेफलाइटिस से तीन बच्चों की मौत की खबर सामने आ गई थी.
भाजपा नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने भी 16 जून को मुजफ्फरपुर जाने की जहमत उठाई. जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ही राजधानी पटना से महज 70 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर दो हफ्ते बाद पहुंचे तो फिर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के बारे में क्या कहा जाए. यह भी शायद कम था कि केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे मुजफ्फरपुर में इंसेफलाइटिस के मसले पर हो रहे प्रेस कॉन्फ्रेंस में नींद की झपकी लेते नजर आए. ऐसा लगता है मानो बच्चों की मौत जैसा संगीन मामला भी नेताओं को उबाऊ लग रहा हो. यूं ही नहीं उस रात मंगल पांडेय क्रिकेट की जीत में दिलचस्पी दिखाते नजर आए.

अश्विनी चौबे क्या, लगता है सो तो पूरी सरकार रही है. वरना इस बीमारी से इस बार फिर महज दो हफ्तों में करीब सौ बच्चों की मौत कैसे हो गई? जाहिर है, सरकार इसको लेकर सचेत नहीं थी, जबकि यह बीमारी पिछले वर्षों में भी अपना भयानक रूप दिखा चुकी है. नीतीश कुमार बिहार में पिछले करीब 14 साल से लगातार मुख्यमंत्री बने हुए हैं. बीच में महज कुछ दिनों के लिए उन्होंने इस पद को छोड़ा था. आखिर वे अब तक इस बीमारी के समाधान तलाशने में क्यों नाकाम रहे? कम-से-कम इंतजामों को लेकर भी उन्होंने क्या किया? एक टीवी चैनल में मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच के डॉक्टर यह बताते नजर आए कि अस्पताल में डॉक्टरों और दवाईयों की भारी कमी है. क्या ये मौतें सत्ता-जनित हैं क्योंकि बच्चों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है? क्या यही नीतीश कुमार का सुशासन है? उनके इस ‘सुशासन’ में बच्चे कब तक इस तरह बेमौत मरते रहेंगे? नीतीश कुमार 12 जून को अपने आवास पर मध्य निषेध की समीक्षा कर रहे थे, उसी दिन बच्चों की मौत का आंकड़ा करीब 50 हो गया था. काश, नीतीश कुमार ने इंसेफलाइटिस से होने वाली मौतों की भी समीक्षा की होती!
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी इस मसले पर कतई गंभीर नजर नहीं आ रही. 2014 में जब मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी, उसी साल बिहार में इंसेफलाइटिस से करीब 375 मौतें हुई थीं. उसे तभी से इस पर ध्यान देना चाहिए था लेकिन इस साल भी इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत से जाहिर है कि मोदी सरकार कोई उपाय नहीं कर सकी. उस बिहार के लिए भी जिसने भाजपा गठबंधन को इस बार अपनी 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर जीत दिला दी है. क्या इस भारी जीत के बाद अब मोदी बिहार की इस गंभीर समस्या की ओर देखेंगे? फिलहाल तो प्रधानमंत्री मोदी योग दिवस की बधाई देते और उसे सफल करने की अपील करते नजर आ रहे हैं. उन्होंने 16 जून को एक ट्वीट करते हुए लिखा, “यह देखकर खुशी हो रही है कि योग को सम्मान मिल रहा है और लोग ऐतिहासिक एफिल टॉवर के पास भी योग का अभ्यास कर रहे हैं.” प्रधानमंत्री जी बिहार के मरते बच्चों को भी क्या कोई जगह मिल पाएगी? उन मासूमों को ऐसा सम्मान भले मत दीजिए, बस जिंदा रहने का जो उनका हक है वह तो दिला दीजिए, क्योंकि बच्चों की जिंदगी की जिम्मेदारी देश की सरकार की भी है!
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