कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए-2 सरकार के दौरान साल 2009-13 के दौरान देशभर में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम के करीब साढ़े चौंतीस हजार मामले सामने आए और करीब पांच हजार मौतें हुईं. वहीं मोदी सरकार के दौरान साल 2014-18 में इसके मामलों में करीब 60 प्रतिशत तो मौतों में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
सरोज कुमार
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र एनडीए की सरकार सत्ता में आई, तो उस साल भी इंसेफलाइटिस ने देश में अपना कहर बरपाया था. उस वक्त हर्षवर्धन बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बिहार के मुजफ्फरपुर में गए थे तो उन्होंने 100 बेड का एक बच्चों का विशेष अस्पताल बनवाने का सरकार की ओर से वादा किया था. इस बार भी एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से बच्चों की मौत का आंकड़ा सौ पार कर जाने के बाद वे बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मुजफ्फरपुर गए तो वे वही वादा फिर दोहरा रहे थे. यह स्पष्ट करता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार किस तरह अपने वादों से मुकर गई और एक बार फिर इंसेफलाइटिस की वजह से बड़ी संख्या में मासूमों की मौत हो रही है.
साल 2017 में उत्तर प्रदेश में भी इंसेफलाइटिस की वजह से करीब छह सौ मौतें हुई थीं और गोरखपुर में खराब इंतजाम और ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत का मामला सुर्खियों में रहा था. उसी साल राज्य में भी भाजपा जीत कर सत्ता में आई थी. साल 2014 में बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार थी. इस साल भी वहां भाजपा-जदयू सत्ता में है. जाहिर है, केंद्र और राज्य में काबिज उनकी गठबंधन सरकार इंसेफलाइटिस को लेकर सचेत नजर नहीं आतीं, वरना एक बार फिर मासूम इतनी बड़ी संख्या में शिकार नहीं बनते. यही वजह है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को भी इस बार पीड़ितों के गुस्से का शिकार होना पड़ा.


केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, इंसेफलाइटिस का देश के 22 राज्यों में प्रकोप है, लेकिन 80 फीसदी मामले केवल बिहार, यूपी, असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सामने आते हैं. पूरे देश भर में एईएस का बीते दस साल का आंकड़ा भी चौंकाने वाला और चिंताजनक है. स्वास्थ्य मंत्रालय, नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) और मीडिया रिपोर्ट्स की पड़ताल से पता चलता है कि केंद्र में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में साल 2014-18 के दौरान एईएस 60 फीसदी ज्यादा यानी करीब 56 हजार मामले सामने आए हैं. वहीं कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए-2 की सरकार में साल 2009-13 के दौरान एईएस के करीब साढ़े 34 हजार मामले ही सामने आए थे. इसी तरह एईएस से होने वाली मौतें भी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान करीब 14 प्रतिशत बढ़कर करीब 6 हजार हो गई हैं. ये आंकड़े मोदी सरकार के स्वास्थ्य संबंधी बेहतरी के दावों की पोल खोलकर रख देते हैं.
बिहार के भाजपा नेता और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे 16 जून को इंसेफलाइटिस को लेकर प्रेस वार्ता के दौरान क्रिकेट मैच के विकट पूछते नजर आए, हर्षवर्धन फिर 2014 के वादे दोहराते नजर आए और पीएम मोदी योग दिवस को लेकर मुब्तिला हैं. ऐसे में लगता नहीं कि राज्य और केंद्र सरकार बच्चों की मौत को लेकर गंभीर है. बिहार के मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने सरकार की नाकामियों को देखने की बजाय विपक्ष पर निशाना साधा कि राष्ट्रीय जनता दल के राज में बिहार में स्वास्थ्य और मेडिकल कॉलेजों की स्थिति बदतर थी. लेकिन सुशील मोदी यह क्यों भूल रहे हैं कि बीच के करीब दो साल छोड़ दें तो पिछले 15 साल में अधिकतर समय वे उनकी गठबंधन सरकार ही सत्ता में रही है. विपक्ष पर उनके आरोप से उनकी नाकामी छिप नहीं सकती. इंसेफलाइटिस के इतने भयानक आंकड़ों के बाद क्या सरकार अब भी होश में नहीं आएगी और मासूमों को इसी तरह बार-बार मरने के लिए छोड़ देगी?
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