पत्रकारों पर भारत में बढ़ता पहरा

    अभी पिछले महीने ही पत्रकारों को गिरफ्तार करने के कम से कम तीन मामले सामने आए थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ पर सोशल मीडिया पर “आपत्तिजनक टिप्पणी” का आरोप लगा पत्रकार प्रशांत कनौजिया को दिल्ली में उनके घर से उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

    मोहम्मद ताहिर शब्बीर

    पिछले साल 2018 के मुकाबले इस साल भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 2 स्थान नीचे आ गया है. (फोटो: स्क्रीनग्रैब/रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स वेबसाइट)

    रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की ओर से अप्रैल 2019 में जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 140वें स्थान पर है. पिछले साल 2018 के मुकाबले इस साल भारत प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 2 स्थान नीचे आ गया है. पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स एक गैर लाभकारी संगठन है जो दुनिया भर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करने का काम करती है. सूचकांक में पाया गया है कि पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदलने के साथ- साथ दुनियाभर के पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना भी बढ़ी है. सूची में नॉर्वे लगातार तीसरे साल पहले और फिनलैंड दूसरे स्थान पर है.

    ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ के अनुसार भारत में भी पत्रकारों की स्थिति काफी खराब है. खासतौर पर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौर को भारत में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक समय चिह्नित किया गया है. प्रेस स्वतंत्रता की मौजूदा स्थिति में एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा भी शामिल है- जिसमें पुलिस की हिंसा, नक्सलियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है. अपने काम की वजह से 2018 में भारत में कम से कम 6 पत्रकारों की जान गई. यह बताता है कि भारतीय पत्रकार खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में गैर अंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार बहुत से खतरों का सामना कर रहे हैं.

    अभी पिछले महीने ही पत्रकारों को गिरफ्तार करने के कम से कम तीन मामले सामने आए थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ पर सोशल मीडिया पर “आपत्तिजनक टिप्पणी” का आरोप लगा पत्रकार प्रशांत कनौजिया को दिल्ली में उनके घर से उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. बाद में वह जमानत पर छूटे. योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक महिला के अपमानजनक बयान से जुड़े एक दुसरे मामले में नोएडा के एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल के हेड इशिका सिंह और एडिटर अनुज शुक्ला को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इन दोनों ही मामलों में पुलिस ने बिना किसी लिखित शिकायत के स्वत: संज्ञान लेकर कारवाई की. वहीं झारखंड के एक पत्रकार रुपेश कुमार सिंह से बिहार पुलिस ने गया में विस्फोटक बरामद करने का दावा कर गिरफ्तार कर लिया. पुलिस के इस दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है.

    इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के हिसाब से संवेदनशील क्षेत्र कश्मीर में विदेशी पत्रकारों पर पाबंदी है और अक्सर इंटरनेट भी बंद कर दिया जाता है. रिपोर्ट इस बात का जिक्र भी करती है कि स्थानीय मीडिया संगठनों में काम करने वाले कश्मीरी पत्रकारों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. उन्हें कभी कैद कर लिया जाता है तो कभी अर्धसैनिक बलों के तरफ से हिंसा का सामना करना पड़ता है जिसमें केंद्र सरकार की मौन सहमती होती है.

    रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं. हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर संगठित घृणित अभियानों और हत्या की धमकियों पर भी रिपोर्ट में चिंता जताया गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि खासकर जब महिलाओं को निशाना बनाया जाता है तो यह अभियान ओर ज्यादा उग्र हो जाते हैं.

    रिपोर्ट में महिला पत्रकारों के उत्पीड़न और ‘मी टू’ अभियान का भी जिक्र है. गौरतलब है कि 2018 में भारत में मीडिया में ‘मी टू’ अभियान के शुरू होने से महिला संवाददाताओं के संबंध में उत्पीड़न और यौन हमले के कई मामलों से पर्दा हटा था. रिपोर्ट इस बात को नोट करती है कि कानूनी कारवाई और “देशद्रोह” के कानून का इस्तेमाल अक्सर उन पत्रकारों को चुप कराने के लिए होता है जो सरकार की आलोचना करते हैं.

    भारत में पत्रकारिता को “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” माना गया है. अकबर इलाहाबादी ने इसकी ताकत एवं महत्व को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है कि न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल तब अखबार निकालो’. उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए प्रेस को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली बता कर इसके इस्तेमाल की बात कह ‘कलम को हथियार से भी ताकतवर’ बताया था. लेकिन रिपोर्ट को देखकर लगता है कि बुरी एवं स्वार्थी ताकतें आज तलवार और तोप का इस्तेमाल उल्टे खबरनवीसों की कलम को तोड़ने, उन्हें कमजोर करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नेस्तनाबूद करने के लिए जी- जान से लगी हैं.

    मोहम्मद ताहिर शब्बीर दिल्ली स्थित पत्रकार हैं.

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