पड़ताल: आइआइटी में सिर्फ 2% दलित शिक्षक और आदिवासी शिक्षक 1% भी नहीं

    सरकार ने 8 जुलाई को लोकसभा में बताया कि आइआइटी में कुल 6,043 शिक्षकों में सिर्फ 2.46 फीसदी एससी और 0.34 फीसदी एसटी हैं. वहीं एनआइटी में भी सिर्फ 9 फीसदी एससी और 3 फीसदी एसटी फैकल्टी हैं.

    सरोज कुमार

    आइआइटी कानपुर में दलित शिक्षक के उत्पीड़न का मामला सुर्खियों में रहा था (फोटो: आइआइटी कानपुर की वेबसाइट)

    मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने एक सवाल के जवाब में 8 जुलाई को लोकसभा में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआटी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआइटी) में फैकल्टी (शिक्षक) और नॉन-फैकल्टी पदों का आंकड़ा पेश किया. इन आंकड़ों से देशभर के आइआइटी में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) संबंधी बेहद चिंताजनक ब्यौरा सामने आया है. दरअसल, आइआइआटी में कार्यरत 6,043 शिक्षकों में महज 2.46 फीसदी एससी और 0.34 फीसदी एसटी शिक्षक हैं. एनआइटी में एससी और एसटी शिक्षकों की संख्या आइआइटी की तुलना में थोड़ी बेहतर है लेकिन वह भी बहुत कम है.

    दरअसल, सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश के सभी आइआइटी में फैकल्टी पदों की स्वीकृत संख्या 8,856 है. इनमें 6,043 पद भरे गए हैं और 2,813 पद यानी करीब 32 फीसदी पद रिक्त हैं. वहीं, आइआइटी में फिलहाल कार्यरत इन 6,043 फैकल्टी में सिर्फ 149 एससी और 21 एसटी हैं. यानी इनमें एससी महज 2.46 फीसदी और एसटी महज 0.34 हैं.

    हालांकि, एससी-एसटी शिक्षकों के प्रतिनिधित्व के मामले में एनआइटी का हाल थोड़ा बेहतर है लेकिन यहां भी वे देश में अपनी आबादी और आरक्षण के हिसाब के बहुत कम हैं. सरकार ने बताया कि एनआइटी में कुल 7,413 फैकल्टी पद स्वीकृत हैं, जिनमें एससी के लिए 721 और एसटी के लिए 380 आरक्षित हैं. लेकिन एनआइटी में फिलहाल 4,202 फैकल्टी कार्यरत हैं, जिनमें 404 एससी और एसटी सिर्फ 139 हैं. यानी महज 9.6 फीसदी एससी और 3.3 फीसदी एसटी फैकल्टी एनआइटी में कार्यरत हैं.

    आइआइटी में दलित-आदिवासी शिक्षकों की संख्या बहुत ही कम

    इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि एससी और एसटी फैकल्टी को लेकर देश के ये ‘प्रतिष्ठित’ संस्थान समावेशी नहीं हैं. आइआइटी जैसे संस्थानों में दलित छात्रों की आत्महत्या के मामलों ने भी दर्शाया है कि इन संस्थानों में किस तरह वंचित समूहों के लिए दिक्कतें हैं. आइआइटी कानपुर में दलित असिस्टेंट प्रोफेसर सुब्रह्मण्यम सदरेला के जातिगत उत्पीड़न का मामला भी सुर्खियों में आया था और इस मामले में चार प्रोफेसरों को दोषी भी पाया गया था. इस प्रकरण ने भी आइआइटी में दलित फैकल्टी के प्रति अन्य वर्ग के प्रोफेसरों के रवैये की पोल खोल दी थी. जाहिर है, आइआइटी में दलित-आदिवासी जैसे वंचित समुदाय के शिक्षकों का नगण्य प्रतिनिधित्व संकेत करता है कि वहां उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है. लेकिन लोकसभा में अपने जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्री ने इन संस्थानों में शिक्षक पदों पर एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है. ऐसे में लगता है कि आइआइटी-एनआइटी में शिक्षक पदों पर इन वंचित समूहों का प्रतिनिधित्व सरकार के एजेंडे में नहीं है.

    हालांकि, आइआइटी और एनआइटी में नॉन-फैकल्टी (गैर-शैक्षणिक) पदों पर एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व बेहतर है. आइआइआटी में नॉन-फैकल्टी का कुल स्वीकृत पद 9,465 है, जिनमें एससी के लिए 1,125 और एसटी के लिए 520 पद आरक्षित हैं. इनमें फिलहाल 888 पदों पर एससी और 275 पर एसटी कार्यरत हैं. वहीं एनआइटी में कुल स्वीकृत नॉन-फैकल्टी पदों की संख्या 8,163 है, जिनमें 1,017 एससी के लिए और 496 एसटी के लिए आरक्षित हैं. फिलहाल एनआइटी में इनमें 3,817 पद भरे गए हैं और इनमें 692 एससी और 317 एसटी हैं. जाहिर है, आइआइटी-एनआइटी में नॉन-फैकल्टी पदों की तरह ही फैकल्टी पदों पर भी एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है.

    (अपने सुझाव या लेख contact@themargin.in पर भेजें)