घाटी में लोग परेशान हैं, डरे हुए हैं और गुस्से से भरे हैं. पढ़ें कश्मीर के हालात पर छपे एक ख़बर का संक्षिप्त हिस्सा, द न्यूयॉर्क टाइम्स से साभार:
समीर यासिर, सुहासिनी राज और जेफ्री गेट्लमैन

श्रीनगर की सड़कों पर सुरक्षाकर्मी काले कपड़े से मुंह पूरा ढांके, अपनी बंदूकें थामें, चेक पोस्ट के पीछे खड़े हैं. सहमे हुए लोग अपने घरों की खिड़कियों से बाहर झांकते हैं. कई अपना पेट काटने को मजबूर हैं.
बंद पड़े इस शहर की फिज़ा में शनिवार को संकट कुंडली मारे बैठा था. एक दिन पहले ही एक बड़े विरोध प्रदर्शन के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों और कश्मीरियों के बीच झड़प हो गयी थी.
दुकानें बंद, एटीएम में पैसे ख़त्म हैं. बाहरी दुनिया से संपर्क के सभी रास्ते बंद हैं – इंटरनेट, मोबाइल फ़ोन यहां तक कि लैंडलाइन फ़ोन की सुविधाएं भी निरस्त कर दी गयी हैं, लाखों लोगों से संपर्क के सारे माध्यम छीन लिए गये हैं.
“द न्यूयॉर्क टाइम्स” के पत्रकारों ने उस कश्मीर की पहली झलक पायी है, जहां ज़िंदगियां कैद हैं. जहां की जनता बीते हफ़्ते शुरू हुई घटनाओं से परेशान, डरी हुई और गुस्से से भरी है.
लोगों का कहना है कि बाहर निकलने के लिए उन्हें अधिकारियों से मिन्नतें करनी पड़ीं, रेत भरे बोरों, ट्रकों और सैनिकों की क़तारों से होकर गुज़रना पड़ा, जो उन्हें लोहे के मास्क के पीछे से घूरते रहे. स्थानीय नागरिकों का कहना था कि उन्हें ज़रूरत का सामान, मसलन दूध खरीदने के लिए भी सुरक्षाबलों द्वारा पीटा गया.
कश्मीर की स्वायत्तता ख़त्म करने की भारत द्वारा 5 अगस्त को की गयी एकतरफ़ा कार्रवाई के निर्णय से उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ संबंध बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. पाकिस्तान का भी दावा है कि कश्मीर के कुछ हिस्सों पर उसका अधिकार है. यदि इस क्षेत्र में कोई भी नाटकीय या उकसाने वाले बदलाव होते हैं, तो उसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव क्षेत्र में देखने को मिलता है. भारत द्वारा 5 अगस्त को उठाये गये कदमों को भी व्यापक तौर पर नाटकीय माना जा रहा है और उकसाऊ भी.
चश्मदीदों का कहना है कि शुक्रवार को श्रीनगर की गलियों में दस हज़ार से ज़्यादा लोग कश्मीर का झंडा लहराते हुए और कश्मीर की आज़ादी के नारे लगाते हुए शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे, तभी भारतीय सैन्य बलों ने उन पर गोलियां चला दीं.
इसके बाद, लोगों की बड़ी भीड़ तितर-बितर हो गयी. लगातार ऑटोमैटिक हथियार दागे जाने की आवाज़ विरोध प्रदर्शन के दौरान बनायी गयी वीडियो में कैद है. हॉस्पिटल अधिकारियों का कहना है कि इस पूरे प्रकरण में कम से कम 7 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की आंखों में पेलेट लगी है.
अफ़साना फ़ारूक़, 14 साल की एक लड़की इस भगदड़ में कुचले जाने से किसी तरह बच गयी.
श्रीनगर के अस्पताल में जहां अफ़साना बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी, वहीं हमारी बात उनके पिता फ़ारूक़ अहमद से हुई. फ़ारूक़ कहते हैं, “हम नमाज़ के बाद शांतिपूर्वक लौट रहे थे, अचानक उन लोगों ने हम पर हमला शुरू कर दिया.”
इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि कश्मीर में बदलाव की ज़रूरत है. बीते दशकों में कश्मीर में हज़ारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और वहां की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गयी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि नया दर्जा मिलने से कश्मीर में शांति और उन्नति होगी.
घाटी में हमने जिन 50 कश्मीरियों से बात की, उनमें से लगभग सभी का कहना था कि भारत के इस कदम से लोगों में अलगाव की भावना बढ़ेगी, जिससे बगावत की आग भी और भड़केगी.
बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि दर्जनों नौजवान अभी से ही समुदायों से ग़ायब हैं, इसका आशय साफ़ है कि वे विद्रोह में शामिल हो चुके हैं.
बीते शनिवार अधिकारियों ने नई दिल्ली से तस्वीरें साझा की थीं, जिनमें फल बाज़ार खुले थे और सड़कों पर चहलकदमी देखी जा सकती थी, उनका कहना था कि कश्मीर में स्थिति सामान्य होती दिख रही है. हालांकि, कश्मीर में तैनात सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि रह-रह कर बड़े विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जैसा शनिवार को भी हुआ.
बारामुला में तैनात एक सिपाही, रवि कांत का कहना है, “दिन हो या रात कभी भी, जब उन्हें मौका लगता है, दर्जनों की भीड़ उमड़ पड़ती है, कभी-कभी तो भीड़ में ज़्यादा संख्या में महिलाएं होती हैं. वे बाहर आते हैं, हम पर पत्थर फेंकते हैं और भाग जाते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “लोग इतने गुस्से में हैं कि न तो उनमें कोई ममता बची है, न कोई डर.”
सेना, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल व कश्मीरी राज्य पुलिस के दसियों हज़ार सैनिक घाटी के हर एक कोने में तैनात कर दिये गये हैं. यहां तक कि कुछ दूरदराज़ के गांवों में भी हर घर के बाहर एक सैनिक तैनात है.
सुरक्षा घेरे के इस गहन चक्रव्यूह से जूझते रहने से लोगों का तनाव बढ़ रहा है. फ़ोन पर अपने बेटे की आवाज़ सुनते ही अधेड़ उम्र की मां शमीमा बानो की आंखें छलछला गयीं.
वे रोते हुए बस इतना ही पूछ पायीं, “तुम जिंदा हो?”
पड़ोस के सरकारी ऑफ़िस में जहां अधिकारियों ने फ़ोन सेवाएं मुहैया करायी हैं, उन्होंने अपने बेटे की आवाज़ सुनने के लिए 400 अन्य लोगों के साथ घंटों लाइन में इंतज़ार किया था. कॉलेज जाने वाली उम्र के उनके बेटे का इलाज़ भारत के मुंबई शहर में हो रहा है, जहां उसका ऑपरेशन भी होना था.
दूसरी तरफ, कई बीमार लोग पूरे दिन सफ़र करने के बाद ललद्यद हॉस्पिटल पहुंचे, जहां नाम भर के ही कर्मचारी मौजूद थे. कई डॉक्टर हॉस्पिटल तक नहीं पहुंच सके. मरीज़ डॉक्टर के इंतज़ार में फर्श पर ही कराहते रहे.
डॉक्टर जमीला कहती हैं, “यह जगह नरक हो गयी है.”
कश्मीरियों का कहना है कि इतिहास में जितनी भी कार्रवाई हुई, उनकी तुलना में यह दौर सबसे बुरा है. भारतीय गृह मंत्रालय की एक महिला प्रवक्ता ने शनिवार को कहा था कि वे सभी शिकायतों का जवाब देंगी, मगर उनकी तरफ से हमें अभी तक कोई जवाब नहीं मिले हैं.
कश्मीरी अवाम जानकारी हासिल करना चाहती है, लेकिन उनके पास जानकारी के लिए कोई साधन नहीं बचा. इंटरनेट ठप पड़ा है और फ़ोन व टीवी की सेवाएं बाधित हैं. ऐसे में अफ़वाहों का बाज़ार भी गर्म है. कुछ छोटे कश्मीरी अख़बार नाफ़रमानी का जोख़िम उठाते हुए चार या कभी आठ पन्नों के संस्करण छाप रहे हैं, जिन्हें लोगों के बीच एहतियात से मिल-बांट कर पढ़ा जा रहा है.
अख़बार की यही प्रतियां पहले 3 रुपये की मिलती थीं, अब उनकी कीमत 50 रुपये हो गयी है. वहीं, कोई डिजिटल संस्करण उपलब्ध नहीं है.
यह लेख रविवार को द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक ख़बर का संक्षिप्त हिस्सा है. द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए श्रीनगर से समीर यासिर व सुहासिनी राज और नई दिल्ली से जेफ्री गेट्लमैन. अनुवाद शक्ति ने किया है.
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