कश्मीर से ज़मीनी रिपोर्ट: 1 जुलाई से 16 अगस्त 2019

    कश्मीर में हो रही घटनाओं के पीछे की सच्चाई. सरकार और मीडिया के दुष्प्रचार और झूठ का पर्दाफाश

    अशरफ़ भट्ट

    हम द मार्जिन पर अशरफ़ भट्ट के ब्लॉग से कश्मीर के हालात पर उनके इस रपट का हिंदी अनुवाद छाप रहे हैं. अनुवाद सुमति पीके ने किया है:

    1) 1 जुलाई को अमरनाथ यात्रा शुरू होने पर सरकार ने स्थानीय कश्मीरियों की आवाजाही पर  रोक-टोक लगाना शुरू कर दिया था. स्थानीय लोगों को राष्ट्रीय राजमार्ग और यात्रा के रास्तों पर गाड़ी  चलाने और पार्क करने की अनुमति नहीं थी. सेना ने सड़क पर जहाँ मन किया वहां बंकर व नाके लगा रखे थे. मरीज़ों, स्कूली बच्चों को ज़्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा था, क्यूंकि कई घंटों तक यात्रा की गाड़ियों के गुजरने का इंतज़ार करना पड़ रहा था. कश्मीरी लोग परेशान, अपमानित थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रया ना दिखाकर सबर से इंतज़ार किया. यहाँ तक की एक वरिष्ठ सरकारी अफसर के पिता के मृत शरीर वाली गाड़ी को भी जम्मू से श्रीनगर जाने नहीं दिया गया. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की आम कश्मीरियों के साथ क्या सुलूक हुआ होगा.

    2) अचानक 2 अगस्त को सरकार ने कहानी फैलाई की खराब मौसम की वजह से अमरनाथ यात्रा को 4  दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है. इस झूठ का पर्दाफाश हुआ जब मौसम विभाग ने बताया की ऐसी कोइ भी  चेतावनी यात्रिओं को नहीं दी गयी है. और मौसम की वजह से यात्रियों को कोई रुकावट नहीं होनी थी.

    3) पहले झूठ के पर्दाफाश होने के बाद, सरकार ने फ़ौरन एक और झूठ फैलाया की अमरनाथ यात्रा पर आतंकवादी हमला होने की संभावना है, और यात्रा को अपनी तरीक 15 अगस्त से पहले रद्द कर दिया, जो 30 साल में पहली बार हुआ. साथ में, यात्रिओं को घाटी से बाहर निकाल दिया गया. सरकारी एजेंसियों ने जानबूझकर डर का माहौल बनाने के लिए कहा कि पहलगाम की ऊंची पहाड़ियों पर बम  बरामद हुए हैं. जब गुलमर्ग में पर्यटकों ने सरकार से पूछा की अगर अमरनाथ गुफा तक पहुँचने के रास्ते में ख़तरा है तो वो गुलमर्ग क्यों छोड़ें, सरकार के पास कोई जवाब नहीं था. एजेंसियां यह चाहती थे की बाहर का कोई भी व्यक्ति यह ना देख  पाएं कि  वो कश्मीरियों के साथ क्या करने जा रहें हैं.

    4) 40,000 अतिरिक्त सेना बल को कश्मीर घाटी में तैनात किया गया, और लोगों ने जब उनसे वजह पूछी तो सरकार ने फिर से झूठ बोला कि यह एक सामान्य कदम है, और यात्रा ड्यूटी पर लगे सेना-बल को आराम देने के लिए ये किया जा रहा है. 

    5)भारत के अलग अलग राज्यों से यहाँ काम करने आए प्रवासी मज़दूरों को सरकारी एजेंसियों ने तुरंत कश्मीर छोड़ने के लिए ज़बरदस्ती की. बिहार के 4 नौजवान जो हमारे घर पर काम कर रहे थे वो काम ख़तम किए बिना चले गए. जब मैंने उनसे कश्मीर अचानक इस तरह छोड़ने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की सेना के लोग रोज़ शाम उनके घरों में जाकर उन्हें जल्द से जल्द कश्मीर छोड़ने के लिए धमका रहे थे.

    6) सरकार के ऐसे कदमों ने पहले ही कश्मीरियों में डर और चिंता फैला दी थी. कई लोग हड़बड़ी में अपनी गाड़ियों में तेल भरवाने  पेट्रोल पम्प भाग रहे थे, कई लोग खाने का सामान इक्कठा करने दुकानों की और भाग रहे थे. कई और लोग थे जिन्होंने राज्य सरकार और राज्यपाल के इस बयान पर विशवास कर लिया था कि कुछ बुरा नहीं होने वाला है और लोगों को खाने-पीने का सामान इक्कट्ठा करने की ज़रुरत नहीं, तो वो कुछ भी इक्कठा करने नहीं भागे. और जिन्होंने भी सरकारी बयानों पर विश्वास कर लिया था (जैसे की डिविज़नल कमिश्नर, जिला कलेक्टर, पोलीस अधिकारी और राज्यपाल साहब के बयान)- आज वो कष्ट भुगत रहें हैं,और खाने, दवाइयों, बच्चों के लिए दूध इत्यादि के अभाव में परेशान हैं. (इसी वजह से कश्मीर के ज़्यादातर लोग सरकारी बयानों और दुष्प्रचार पर विशवास नहीं करते हैं)

    7)  4 अगस्त की शाम को, सरकार ने कुछ डॉक्टर व अन्य मेडिकल कर्मियों सहित कुछ अफसरों को कर्फ्यू पास जारी करना शुरू कर दिया। लोगों में बहुत खौफ फैल चुका था, यह समझकर की कुछ बहुत बड़ा घटने वाला है. 4 अगस्त को कश्मीर में कोई इंसान नहीं होगा जिसने रात को खाना खाया हो या नींद की हो. इंटरनेट, फोन, लैंडलाइन, और अन्य सेवाओं बंद कर दी गयी थी. डर और अव्यवस्था का माहौल पूरी तरह बन चुका था, और किसी को यह नहीं पता था की क्या होने वाला हैं. 4 अगस्त की रात को सैकड़ों जवान लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया था और पुलिस थानों में डाल दिया गया था.

    8) आधी रात को कर्फ्यू का ऐलान कर दिया गया, और सभी सड़कें बंद कर दी गई. हर गली-कूचे में भारी संख्या में सेना तैनात थी. फौजियों के दम पर हमें बंदी बना कर रखा गया, जो अभी तक जारी है.

    9) 6 अगस्त 2019 को मेरा भाई अपनी पत्नी और 1 साल के बीमार बच्चे को लेकर उसके इलाज के लिए अस्पताल की ओर चलने लगे. सभी गाड़ियों पर रोक थी इसलिए उन्हें 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. हर 500 मीटर के बाद, उन्हें सरकारी और सैनिक बल रोक रहे थे. सैनिक बच्चे के माथे पर हाथ रख के बार बार देख रहे थे की बच्चा वाकई बीमार है या मेरा भाई झूठ बोल रहा है. चलते वक़्त उन्होंने सेना को एक एम्बुलेंस को रोकते देखा. एम्बुलेंस में बैठे लोगों ने उनको मरीज़ के कागज़ात दिखाए और बताया की वो एक गर्भवती महिला को अस्पताल ले जा रहे हैं. सेना ने उनको कहा कि महिला को बाहर निकाला जाएं ताकि वो उनका पेट देखकर तस्सली करें कि वो वाकई गर्भवती है या नही. हमारे बच्चों, मरीज़ों, महिलाओं को इस तरह से ज़लील किया जा रहा है! हम इस वक़्त तुम्हारे जितने शक्तिशाली नहीं हैं, पर हम इसको भूलेंगे नहीं. जिन्होंने इस सब को सही ठहराया, प्रकृति तुमसे भी उस हिसाब से बदला लेगी.

    10) 7 अगस्त को घटिया, बेहूदा और झूठ फैलाने वाले मीडिया चैनलों और उनको चाटुकार, कट्टर एंकरों ने एक वीडियो जारी किया जिसमें एक सरकारी अफसर दक्षिण कश्मीर में सड़क पर बिरियानी खा रहा था, यह दिखाने के लिए की सब कुछ ठीक है. यह उच्च दर्जे का झूठ और दुष्प्रचार है जो भारत सरकार और उसकी गोदी मीडिया कश्मीर के बारे में हमेशा फैलाती है. यह हुआ कैसा?: जहाँ इस अफसर ने प्रचार के लिए यह झूठी वीडियो बनाई, वहां सख्त कर्फ्यू लागू थी और अतिरिक्त  सेना मौजूद थी.  वो अफसर भारी सिक्यूरिटी और सेना के रक्षक दलों के साथ आया था. पूरा इलाके को घेरा गया, कुछ मासूम लोगों को सेना द्वारा ज़बरदस्ती घर से बाहर लाया गया ताकि भारत के लोगों को यह दिखाया जाएं कि कश्मीर में हालात ठीक हैं. कोई भी कश्मीरी ऐसे तमाशों पर विश्वास नहीं करता है. हम हर ऐसे चैनल को चुनौती देते हैं कि उस वीडियो में दिखाए गए लोगों से सच जानने के लिए बात करें और फिर उसे अपने चैनलों पर दिखाएं.

    11)अति-देशभक्त फिदायीन एंकर और पैनल पर बैठे ज़्यादातर भारतीयों  को मुद्दे पर बात करते हुए सिर्फ दो पूर्व-मुख्य मंत्रियों ओमर अब्दुल्लाह और मेहबूबा मुफ्ती के गिरफ्तारी की चिंता है, मानो आम कश्मीर जनता के कोई मायने ही न हो. इन घटिया एंकरों ने कश्मीर पर डिबेट शुरू कर दी और ऐसे लोगों को बात रखने बुलाया जिन्हें कश्मीर की हकीकतों के बारे में पता होना तो दूर, कश्मीर शब्द बोलना तक नहीं आता. इन बदमाश चैनलों और उनके “नैनो-चिप” पत्रकारों ने यह पहले भी किया है. नोटबंदी के समय इन्होंने 125 करोड़ भारतीयों को उल्लू बनाने के लिए दावा किया था कि सरकार के जारी किए नए नोटों में जी.पी.एस नैनो-चिप लगें हैं. यह इतना बड़ा धोखा  था, पर एक भी “नैनो-चिप” पत्रकार ने आज तक लोगों से माफी नहीं मांगी, और ना ही लोगों ने झूठ फैलाने के लिए उनसे सवाल कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे किया। भारत के लोग कैसे इन बेवकूफों पर यकीन करते हैं? कश्मीर में कोई भी उनकी बातों पर यकीन नहीं करता. इनकी बेवकूफी की हद तो अब पार हो गयी जब इन्होंने प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय मीडिया चैनेलों पर सवाल उठा दिए, ये सोचकर की  लोग बीबीसी जैसे चैनलों से ज़्यादा इनकी झूठ पर विश्वास करेंगे. बेशर्म मीडिया वाले और उनके जाहिल दोगले पत्रकार, कश्मीर पर बात करते हुए भारत और पाकिस्तान के गेहूं-उत्पादन की तुलना कर रहे हैं. अपने ए.सी स्टूडियो में बैठकर बोल रहे हैं की कश्मीर जश्न मना रहे हैं, पर उन्हें सरकार से यह पूछने की हिम्मत नहीं है की अगर आम कश्मीरी जश्न मना रहे हैं तो क्यों उन्हें इस तरह कैद करके, संचार पर प्रतिबंद लगाकर रखा गया है

    12) 8 अगस्त को मेरे छोटे भाई को दिल्ली से घर के लिए फ्लाइट लेनी थी, ताकि वो ईद पर पहुँच जाएँ. हम पूरी रात उसका इंतज़ार करते रहे, और सो नहीं पाए. क्योंकि 4 अगस्त से अब तक हमारा उससे कोई संपर्क नहीं हुआ है. हमें अब भी नहीं मालूम की वो कहाँ और किस हाल में है, ना ही उसे हमारे बारे में पता है. काश ये उन सबके बच्चों, भाइयों, बहनों के साथ हो जिन्होंने हमें इस हालत में डाला है. हमें यकीन है कि यह उन सबके साथ भी किसी न किसी तरह होगा। 

    13) कश्मीर में नई दिल्ली के क्लर्क बने बैठे लोग (उपायुक्त, डिविज़नल कमीशनर, मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, पुलिस अधिकारी) जिन्होंने अपना ईमान और अंतरात्मा कुछ मासिक लाभों और सत्ता के लिए बेचकर सरकार की तरफ से झूठ फैलाने का काम लिया है, और यह सोच लिया है कि  वो कश्मीरियों के हकों, ज़िन्दगियों के इकलौते मालिक हैं, वो हमारे ज़ख्मों पर और नमक छिड़क रहे हैं. अपने अभिमानी शब्दों, हाव-भाव और अभिव्यक्ति से यह बताकर कि उन्होंने फोन बूथ, राशन दुकानें कुछ जगह खुली रखीं हैं, यह जान कर भी कि  पाबंदियों की वजह से लोगों का उन जगहों पर पहुंचना नामुमकिन है. इकीस्वी सदी में भी ये सरकारी नौकर कश्मीरियों के साथ  भेड-बकरियों की तरह सुलूक कर रहे हैं, जिन्हें भेड़ -बकरियों की तरह खाने के अलावा और कुछ ज़रुरत नहीं है. ख़ुदा के लिए! हमारे बच्चों को फॉर्म भरने की आखरी तारीखें है, हमारे लोगों को ईमेल देखने की ज़रूरत है, हमें फ़ोन सेवाओं की ज़रुरत है, सूचना और इंटरनेट की ज़रुरत है जिसके लिए हम पैसा भरते हैं, हमे मूल सुविधाओं तक पहुंचने की ज़रूरतें है.

    14)सब बड़ी मस्जिदें शुक्रवार को बंद थी. इस दर्द और तनाव में, कर्फ्यू में, बिना मूल सहूलतों और खाने-पीने के सामन के, कौन ईद माना सकता था? यह पहली बार है जब हम अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को ईद पर मुबारकबाद नहीं दे पाए. मोबाइल, लैंडलाइन, और इंटरनेट पूरी तरह बंद हैं. बच्चों के लिए नए कपडे और सामान तो भूल ही जाओ, सरकारी पाबंदियों की वजह से लोग दूध, आटा , चावल, दवाइयों जैसी मूल सामग्रियां भी नहीं खरीद पाए. सरकारी ताकतों ने सभी बड़ी मस्जिदें और ईद-गाह बंद कर दी थी. ईद की नमाज़ सिर्फ छोटी मस्जिदों में और छोटे समूहों में करने की अनुमति थी. ऐसे जगहों में लोगों से दुगनी फ़ौज मौजूद थी. ईद के एक दिन पहले, प्रशासन ने सभी इमामों को चेतावनी दे दी थी की वो मौजूदा हालत पर या इसके खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे, और अगर उन मस्जिदों में या आस पास कोई प्रदर्शन हुआ तो उनको ही ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.

    15) हर जगह उदासी छाई है. ईद पर भी कर्फ्यू लगा दिया गया. बेशर्म भारतीय मीडिया सरकार के इशारों पर फिर से झूठ फैला रहे हैं, की “पूरे कश्मीर में ईद मनाई गयी, लोग खरीददारी कर रहें  हैं”, जो सरासर झूठ है. सेना तो मरीज़ों को भी आसानी से अस्पताल जाने नहीं दे रही, फिर यह कैसे संभव है की आम लोग घूमकर खरीददारी कर रहे हैं? और खरीदेंगे क्या? जब दुकानें बंद पडी हैं और ए.टी.एम में पैसे ख़तम हैं.

    16) ईद की दोपहर को 3 जवान लड़कों को अनंतनाग के मट्टान में सेना द्वारा बेरहमी से पीटा गया. जब बुज़ुर्गों ने वहां इक्कठा होकर पूछा की वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो सेनिकों ने जवाब दिया की वो लड़के उन्हें घूर रहे थे.


    17) बेशर्म चैनलों,  “मोदी का नया कश्मीर” हैशटैग करना बंद करो. यह गुंडे तो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर और “कश्मीर में 15 अगस्त मनाये जाने” पर खबर और डेबिट दिखा रहे हैं. पर इनके पास हिम्मत नहीं की आम कश्मीरियों की पीड़ा और दुःख को दिखाएं। हम कैद में हैं, हमारा दम घोटा जा रहा है, हमें अपमानित किया जा रहा है, हमारे मूल अधिकारों को छीन लिया गया है.

    18) हमारे बच्चें बिना दूध के रो रहे हैं, हमारे मरीज़ों को दवाई नहीं मिल रही है. पर उग्र-देशभक्ति के नाम पर और चुनाव जीतने के लिए ये गिद्ध और उनके अंध-भक्त हमारे सामूहिक दर्द, पीड़ा, बेबसी और अभूतपूर्व प्रतिबंधों का जश्न मनाएंगे, हसेंगे। हम भूलेंगे नहीं। हमारी पीड़ा तुम्हारे लिए  जश्न का मौका है,और  इसी बात से सब कुछ साफ़ हो जाता है.

    19) भले ही, अभी  शायद हमारी कोई आवाज़ नहीं है, क्योंकि कश्मीर पर बनाई गयी भव्य कथाओं में हम आम कश्मीरियों को दखल करने की कोई ताकत नहीं है. पर हम बेवक़ूफ़ नहीं हैं, हमारे खिलाफ फैलाए जा रहे हर झूठ की बारीकियां हम समझ रहें हैं.

    20) हम हर उस इंसान के शुक्र-गुज़ार हैं, जो भारत में और अन्य देशों से (खासकर अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिआ इत्यादि) हमारे लिए समर्थन कर रहें हैं, मानवता के आधार पर हमारे साथ एकजुटता दिखा रहें हैं, हमारे पक्ष में हर माध्यम से प्रतिरोध कर रहें हैं.

    अशरफ़ भट्ट ने आइआइटी, कानपुर से भाषा विज्ञान में पीएचडी और आइआइटी, दिल्ली से पोस्ट-डॉक्टरेट किया है. वह अभी विदेश में पढ़ाते है और उनसे ashraf.iitk@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है. इस रपट का अनुवाद सुमति पीके ने किया है.

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