भारत में रहने वाले हर कश्मीरी की सुरक्षा आज चिंता का विषय

    ट्रम्प ने कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश की थी. यह इंगित करता है कि व्हाइट हाउस भारत के दावे से दूर जा रहा है कि कश्मीर केवल एक घरेलू मुद्दा है. इन सबकी वजह से, शायद भाजपा सरकार को कुछ तेवर दिखाने की आवश्यकता महसूस हुई. लेकिन कश्मीरियों के विरोध को दबाने के लिए तैनात हज़ारों सैनिकों के बीच, हर कश्मीरी की सुरक्षा पर आज खतरा मंडरा रहा है.

    अथर ज़िया

    फोटोः सज्जाद हुसैन फेसबुक प्रोफाइल

    अगस्त की पांच तारीख को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी भाजपा सरकार ने बहुत ही जल्दबाज़ी में, राष्ट्रपति के आदेश के ज़रिये भारत-शासित कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधानों को हटवा दिया, जिससे नए सिरे से हिंसा बढ़ने की चिंता कश्मीरियों में बढ़ गयी है. कश्मीरी इस कदम को असंवैधानिक और धोखेबाज़ी मान रहे हैं.

    अनुच्छेद 370, जो पिछले 70 वर्षों से कश्मीर के साथ भारत के जटिल रिश्तों का आधार रहा है, कश्मीर को अपना अलग संविधान, झंडा और स्वायत्ता देता था, सिवाये विदेश,रक्षा और संचार मामले के. इसके अतिरिक्त, यह राज्य के स्थायी निवासियों को संपत्ति का अधिकार और मताधिकार देकर राज्य को अपनी क्षेत्रीय संप्रुभता बनाये रखने में मदद करता था. अनुच्छेद 370 को हटाकर, भाजपा सरकार ने भारत के अन्य हिस्सों से लोगों को इस मुस्लिम-बहुल राज्य में स्थायी रूप से बसने, ज़मीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और शिक्षा के स्कॉलरशिप लेने का अधिकार दे दिया है. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षकों के लिये यह कदम चौंकाने वाला है, लेकिन कश्मीरी लोगों को कई हफ़्तों से भनक हो चुकी थी कि कोई ऐसा कदम उठाया जाने वाला है जिससे इस क्षेत्र के नई दिल्ली के साथ के तनावपूर्ण रिश्ते और भी लाइलाज हो जाएंगे.

    और अब जब भारत अपने ही संविधान और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के खिलाफ जाकर कश्मीर पर पूर्णतः कब्ज़े की मंशा दुनिया के सामने ज़ाहिर कर चुका है, तो क्षेत्र में संघर्ष, दबाव और हिंसा बढ़ने की पूरी संभावना बन चुकी है.

    भारत सरकार इस तरह का अभूतपूर्व कदम उठाने जा रही है, इसके संकेत 25 जूलाई को मिल गए थे जब गृह मंत्रालय ने 10,000 अर्ध-सैनिक और 28,000 अतिरिक्त सेना की तैनाती कश्मीर में कर दी. सरकार ने दावा किया था कि यह फैसला कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिये किया गया है. लेकिन जल्द ही खबर आने लगी कि विभिन्न सरकारी विभागों के कर्मचारियों को हाई अलर्ट पर रहने के लिये कहा गया है और भोजन-पानी का संग्रह करने को बोला गया है।

    केन्द्र सरकार के इस तरह के कदम से कश्मीरी पहले ही चौकन्ने हो गए थे. सरकार ने इन खबरों को अफवाह बताकर स्थिति को शांत करने की कोशिश की. लेकिन जब अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रद्द कर दिया गया तब यह स्पष्ट हो गया कि कुछ बड़ा होने वाला है.

    प्रशासन ने स्थिति को शांत करने के लिये यह भी दावा किया कि वो तीर्थयात्रा इसलिए रोक रहे हैं क्योंकि उनके पास खूफिया जानकारी है कि जैश-ए-मोहम्मद अमरनाथ यात्रियों पर हमला करने की योजना बना रहा है. राज्य में सक्रिय हथियारबंद गुटों ने ऐसे किसी भी योजना होने से इंकार कर दिया. लेकिन सरकार ने सी-17 एयरक्राफ्ट से तीर्थयात्रियों को एयरलिफ्ट कर बाहर निकाल लिया.

    बाद में, यह भी खबर आई कि पर्यटकों और बाहर से आए छात्रों को क्षेत्र से बाहर निकलने के लिये कहा गया है. प्रशासन ने एकबार फिर ऐसी रिपोर्ट का खंडन किया जबकि इन पर्यटकों और छात्रों को बसों में भरकर बाहर ले जाते हुए देखा जा रहा था.

    पिछले कुछ दशकों में कई बार झूठी खबरों का सामना करने के बाद, कश्मीरी नागरिकों ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और सरकार के संभावित इरादों के बारे में अनुमान लगाना व सरकारी दावों की पोल खोलना शुरू कर दिया था. उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि उनके लिए क्या योजना बनायी जी रही है, लेकिन जवानों की संख्या बढ़ने से उनको इतना पता था कि कुछ बड़ा और संकट बढ़ाने वाला फैसला आने वाला है.

    इन तमाम अफवाहों के बीच, कश्मीरियों ने वो करना शुरू किया जो उनके हाथ में था. उन्होंने राशन, दवाई, गैस जैसी जरुरी घरेलू समानों को एकत्रित करना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने बीमार रिश्तेदारों, गर्भवती महिलाओं को अस्पताल के नज़दीक ठहराना शुरू कर दिया, कि कहीं आगे चलकर कोई प्रतिबन्ध लग जाए.

    कुछ ही दिनों में उनका डर सही साबित हुआ. 5 अगस्त को सुबह 6 बाजे सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया और चार से ज़्यादा लोगों के एक जगह जुटने पर प्रतिबंध लगाया. इसके तुरंत बाद ही इंटरनेट और फोन की लाइन भी बंद कर दी गयी.

    11 बजे भाजपा सरकार ने अपने मंसूबों से पर्दा हटाया. संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को हटाने का प्रस्ताव रखा. शाह ने कहा, “अब पूरा संविधान जम्मू और कश्मीर में लागू होगा.” अमित शाह की इस घोषणा ने कश्मीरियों के उस डर को पुख़्ता कर दिया था जो उन्हें वर्षों से सता रहा थाः मोदी की हिन्दू-राष्ट्रवादी सरकार कश्मीरियों पर पूरी तरह कब्ज़ा करने और उनको हमेशा के लिए चुप कराने से कम में नहीं मानेगी.

    2014 में सत्ता संभालने के बाद से, भाजपा सरकार कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के लिए दृढ़ संकल्पित है. पार्टी के उग्र-दक्षिणपंथी हमेशा से ही अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान पर एक धब्बे के रूप में मानते आए हैं और इससे छुटकारा चाहते रहे हैं.

    आज, इस अनुच्छेद को रद्द करके, भाजपा सरकार ने न केवल अपने समर्थकों को खुश किया और कश्मीरियों को दबाया है, बल्कि अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान को भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है.

    हाल ही में, पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सकारात्मक ध्यान खिंचा है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की शांति वार्ता में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पिछले महीने वाशिंगटन में पहली आधिकारिक यात्रा के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की थी- एक कदम जो इंगित करता है कि व्हाइट हाउस भारत के दावे से दूर जा रहा है कि कश्मीर केवल एक घरेलू मुद्दा है. इन सबकी वजह से, शायद, भाजपा सरकार को कुछ तेवर दिखाने की आवश्यकता महसूस हुई.

    यह शुरू से ही स्पष्ट है कि भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने के कदम को न केवल कश्मीरियों के बल्कि पाकिस्तान के खिलाफ भी एक कदम के रूप में दिखाया है. जब सरकार ने घोषणा से पहले कश्मीर में हजारों अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया, तो उसने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर तैनात सैनिकों की संख्या में भी वृद्धि की- जो कि भारतीय प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के बीच वास्तविक सीमा है।

    3 अगस्त को ही पाकिस्तान ने भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कथित रूप से “क्लस्टर हाथियर” को नियंत्रण रेखा के पार से गोलीबारी में इस्तेमाल करने की निंदा की थी और कहा कि 19 जुलाई से भारतीय गोलीबारी में कम से कम छह नागरिक मारे गए थे और 48 घायल हुए थे.

    कुल मिलाकर, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का निर्णय भाजपा के लिए लोकलुभावन था. इसने प्रधानमंत्री मोदी को अपने 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में शोखी बघारने का एक विषय दे दिया, क्योंकि इसने सरकार के इस दावे को पुष्ट किया कि यह हिंदू राष्ट्र के अपने दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है. इससे वह ये भी दिखा पाए कि सरकार पाकिस्तान से भिड़ने से डरती नहीं है, तब भी जब वाशिंगटन उसके पक्ष में नहीं है.

    जबसे 2014 में हिंदू राष्ट्रवादियों ने सत्ता संभाली है, उन्होंने भारत के लोगों को धीरे-धीरे कट्टर दक्षिणपंथी विचार की तरफ झुकाया है. आज, उनके ऐसे प्रयासों से, मुस्लिमों, दलितों और देश के अन्य हाशिए पर रहने वाले लोगों के साथ भेदभाव, उत्पीड़न, लिंचिंग और लाखों कश्मीरियों का उत्पीड़न भारत में सामान्य बना दिया गया है.

    अनुच्छेद 370 रद्द करना भारत को आक्रामक और उग्र हिंदू राष्ट्र में बदलने की भाजपा की योजना में सिर्फ सबसे नया कदम है, जिसमें किसी अन्य पहचान को जगह नहीं दी जाएगी. वर्षों से जनता की राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काने के लिए कश्मीरियों पर और भारत के अन्य अल्पसंख्यकों पर हमला करने वाली सरकार के इस कदम से कश्मीरियों को आश्चर्य नहीं हुआ है.

    फिर भी, कश्मीर पर कानूनी और राजनीतिक हमले के साथ-साथ, उसके लोगों पर लगाई गई घेराबंदी अभूतपूर्व है. कश्मीरी जल्द या बाद में इसके जवाब में सड़कों पर ज़रूर उतरेंगे. कश्मीरियों के विरोध को दबाने के लिए तैनात हज़ारों सैनिकों के बीच, भारतीय शासन के तहत रहने वाले हर एक कश्मीरी की सुरक्षा पर आज खतरा मंडरा रहा है.

    इस कदम के साथ, भारत के राष्ट्रपति ने न केवल भारत-प्रशासित कश्मीर के भविष्य, बल्कि भारत के लोकतंत्र की मौत पर भी हस्ताक्षर कर दिए हैं.

    अथर ज़िया कवियित्री हैं और नॉर्थ कोलोराडो विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली राजनीतिक एंथ्रोपोलॉजिस्ट हैं. यह आलेख अल जज़ीरा में प्रकाशित हुआ है. लेखिका की अनुमति के बाद इसे द मार्जिन में प्रकाशित किया गया है. इसका अनुवाद अविनाश कुमार चंचल ने किया है

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