कश्मीर संकट: ‘आसन्न त्रासदी’ की आशंका में अस्पताल मरीजों को वापस लौटा रहे हैं

    कश्मीर में जहाँ चिकित्सा आपूर्ति का 90 फ़ीसदी हिस्सा भारत से होता है, इस समय लॉकडाउन और “पैनिक बाइंग” के नतीजतन दवाओं की अभूतपूर्व कमी महसूस की जा रही है

    समान लतीफ़ श्रीनगर, कश्मीर

    कश्मीर इस समय बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, एक ओर जहाँ दवाओं की कमी है, दूसरी तरफ मरीजों को अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जा रहा और लोग सम्पूर्ण संचारबंदी के कारण एम्बुलेंस बुलाने में भी अक्षम हैं.

    कश्मीर के प्रमुख ट्रामा सेंटर श्री महाराजा हरी सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल में थोड़े  मरीज़ अपने इलाज का इंतज़ार कर रहे हैं जबकि अधिकांश वार्ड और बिस्तर खाली पड़े हैं.

    बाहर, जो किसी तरह अस्पताल पहुँच पाए थे, डॉक्टर उन्हें कश्मीर में स्थिति “सामान्य होने पर” आने को कह रहे हैं.

    एक अधिकारी ने पहचान गुप्त रखे जाने का अनुरोध करते हुए द इंडिपेंडेंट को बताया कि कश्मीर के अधिकांश अस्पतालों में की जाने वाली सर्जरी की संख्या में रोज़ के आधार पर 40 से 60 फ़ीसदी की कमी आई है.

    डॉक्टर तर्क देते हैं कि इमरजेंसी सेवाओं पर फोकस का कारण विरोध-प्रदर्शनों के कारण बड़े पैमाने पर लोगों के चोटिल होने की आशंका के बीच मौतों को टालना है. कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के भारत के 5 अगस्त के फैसले के बाद विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं.

    62 वर्षीय नसीमा अख्तर दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा नगर में अपने घर में दर्द से छटपटा रही हैं. उन्हें पथरी की समस्या है और उन्हें त्वरित सर्जरी की आवश्यकता है पर इस महीने की शुरुआत में जब वह अस्पताल गयीं तो अधिकारियों ने उनके उपचार को स्थगित करने का फैसला किया.

    अख्तर ने द इंडिपेंडेंट को बताया, “मैं असहनीय पीड़ा में हूँ और मेरी सर्जरी नहीं की जा रही. यह अनैतिक है. डॉक्टर कह रहे हैं, “जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते ऑपरेशन नहीं होगा.”

    उन्होंने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें दर्द निवारक दवाएं लिख कर दी हैं और राजनीतिक हालात सामान्य होने के बाद लौटने को कहा है.

    एसएमएचएस अस्पताल के एक अधिकारी ने द इंडिपेंडेंट को बताया, “हमें कहा गया है कि रूटीन सर्जरी को स्थगित किया जाए क्योंकि ऐसी आशंका है कि 5 अगस्त के निर्णय के बाद यदि विरोध प्रदर्शन होते हैं तो लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की आशंका है”.

    सर्जन डॉक्टर इकबाल सलीम कहते हैं, “कश्मीर में एक अज्ञात और आसन्न त्रासदी की आशंका है और हमें उसके लिए पूरी तरह तैयार रहना है”.

    डॉक्टर सलीम के अनुसार हिंसा की आशंका के कारण उन्होंने सामान्य ऑपरेशन थिएटरों के कर्मचारियों को कैज़ुअलटी और इमरजेंसी सेवाओं में लगाया है, जिससे रूटीन सर्जरियों में देर हो रही है.वह बताते हैं औसतन अस्पताल में एक दिन में 20 रूटीन सर्जरी होती थीं पर अब छह से ज्यादा नहीं हो पा रहीं.

    उत्तरी कश्मीर में 12 वर्षीय शौकत हुसैन भी हर्निया का ऑपरेशन नहीं करवा पा रहा. शौकत के पिता शमीम अहमद हुसैन बताते हैं कि शौकत को हर्निया से असहीय दर्द हो रहा है और वह अक्सर रात में जाग पड़ता है और रोने लगता है.

    वह कहते हैं, “शौकत दिन में भी रोता है और रातों को दर्द से सो नहीं पाता. ऐसा लगता है कि उसे राहत पहुँचाने का कोई तरीका नहीं है.”

    शौकत की सर्जरी अगस्त के दूसरे सप्ताह में करना तय किया गया था, पर डॉक्टरों ने उसे भी संकट कम होने के बाद आने को कहा गया.

    मरीजों को शुरूआती उपचार के बाद जल्दी छुट्टी दी जा रही है, जबकि ऐसे में उनके  संक्रमण का शिकार का खतरा है.

    श्रीनगर के 48 वर्षीय फारूक कुरैशी लॉकडाउन के दौरान बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ शिक्षकों की तरफ से स्वेच्छा से शुरू किये गए ट्यूशन केंद्र पर अपने बच्चे को छोड़ने जा रहे थे, जब उन्हें उनकी बायीं आँख में पेलेट लगा.

    वह कहते हैं, “वह लोग हमें घर भेजते हैं और उन्हें इसकी भी परवाह नहीं है कि आंसू गैस से संक्रमित बाहर के माहौल में हमारी आँखों की रोशनी जा सकती है.”

    आपात मामलों में भी फ़ोन बंद कर देने का मतलब है कि कश्मीर के अंदर कई लोग हॉस्पिटल ले जाने के लिए एम्बुलेंस नहीं बुला पा रहे हैं.

    कश्मीर के बारामुला जिले की फहमीद मंज़ूर को प्रसव पीड़ा होने के बाद टैक्सी न मिलने के कारण अस्पताल का आधा रास्ता चल कर तय करना पड़ा था.

    कश्मीर में जहाँ चिकित्सा आपूर्ति का 90 फ़ीसदी हिस्सा भारत से होता है, इस समय लॉकडाउन और “पैनिक बाइंग” के नतीजतन दवाओं की अभूतपूर्व कमी महसूस की जा रही है.

    कश्मीर केमिस्ट एंड डिस्ट्रीब्युटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अरशद हुसैन भट्ट ने द इंडिपेंडेंट को बताया, “एक मरीज़ जो आम तौर पर एक सप्ताह के लिए दवाएं खरीदता था, दो महीने के लिए खरीदकर गया.”

    वह कहते हैं, “यदि आपूर्ति अगले कुछ दिनों में नहीं हो पायी तो हमारे पास दवाइयों की दूकान बंद कर देने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा.”

    वह बताते हैं कि ब्लॉकेड के कारण श्रीनगर के लगभग 3,000 वितरक कश्मीर में दवाइयों की आपूर्ति नहीं कर पा रहे और इसका सबसे बुरा असर मधुमेह, हीमोफीलिया और हाइपरटेंसिव दवाइयों की उपलब्धता पर पड़ा है.

    ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट से साभार. खबर का हिंदी अनुवाद कश्मीर ख़बर द्वारा किया गया है.

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