भारतीय जेल में बंद कश्मीरियों से मिलने के लिए जूझते उनके परिवार वाले

    रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि 300 से अधिक लोगों को जन सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है, जिसके अंतर्गत बिना किसी सुनवाई के 2 साल तक इन्हें हिरासत में रखा जा सकता है. हमीदा 10 दिनों तक श्रीनगर के विभिन्न जेलों के चक्कर काटती रहीं, तब जाकर उन्हें पता चला कि उनका बेटा आगरा में कैद है.

    शेख़ सालिक़, आगरा से

    आगरा सेंट्रल जेल में क़ैद अपने पति आमिर परवेज़ राथर से मिलने आईं मरयम रसूल, उनकी सास और उनका 5 साल का बेटा. राथर को 6 अगस्त को हिरासत में लिया गया था, और कश्मीर में कई जेलों में रखने के बाद उन्हें आगरा लाया गया. परिवार की राथर से 48 दिन में यह पहली मुलाक़ात थी. (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    70 वर्षीया हमीदा बेग़म ने कश्मीर की विवादित हिमालय घाटी से गर्म और उमस भरे आगरा के उस कमरे तक की अपनी थकाऊ और कठिन यात्रा बयान की जहाँ वह अपने बेटे से मिलने के इंतज़ार में बैठीं थीं.

    एक युवक जिसकी उम्र बीस के आस-पास होगी, ने पानी की बोतल उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “उम्मीद न खोइये, आप अकेली नहीं हैं.”

    हमीदा ने एक लम्बी आह भरी और उस युवक के हाथों को अपने हाथों में ले कर दबी ज़बान में कुछ कहा जिसे सुनना मुश्किल था.

    उन्होंने कहा, “ऊपर वाला हमें धैर्य दे”, उनके साथ ही और कई कश्मीरी परिवार कैद कर लिए गए अपने परिजनों से मिलने स्टील की बेंच पर बैठे इंतज़ार कर रहे थे.

    घंटों इंतज़ार करने के बाद हमीदा का नाम पुकारा गया और उन्हें कमरे के अन्दर बुलाया गया.

    20 मिनट बाद जब वो बहार आयीं तो बिलकुल बदली-बदली सी दिखीं. पहले वह चिंतित व तनावग्रस्त थीं, अब उनका चेहरा खिला-खिला और ख़ुशी से भरा था.

    “अपने बेटे को देखना ईद मनाने जैसा था” उन्होंने कहा, “आखिर मैं एक माँ हूँ”.

    हमीदा और वह युवक, गौहर मल्ला, 2 दिन की लम्बी यात्रा साथ कर कश्मीर से 965 किलोमीटर दूर भारतीय शहर आगरा आये थे. यात्रा शुरू होने से पहले दोनों एक दूसरे को जानते तक न थे, पर उनका मकसद एक था: भारतीय अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर आगरा की सबसे बड़ी जेल में बंदी बनाये गए अपने परिवार वालों से मिलना.

    5 अगस्त को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कश्मीर की स्वायत्तता ख़त्म किये जाने और पूर्ण तालाबंदी और संचार साधनों को स्थगित किये जाने के बाद से ही कई कश्मीरियों को आगरा केंद्रीय जेल में बंदी बनाया गया है.

    20 सितम्बर 2019 को आगरा सेंट्रल जेल में क़ैद अपने रिश्तेदार से मिलने का इंतज़ार करता एक कश्मीरी परिवार (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    भारत के हज़ारों-हज़ार सैन्यकर्मी कश्मीर में तैनात किये गए जो पहले से ही दुनिया का वह इलाका है जहाँ सैन्य बलों की सर्वाधिक तैनाती है.

    पुलिस अधिकारियों और ए.पी. को प्राप्त दस्तावेज़ों के मार्फ़त पता चला है कि घाटी के 4000 से अधिक लोग, जिनमें ज़यादातर युवा हैं गिरफ्तार किए गए हैं. अधिकारियों का कहना है कि इनमें से 3000 को रिहा किया जा चुका है और लैंडलाइन फ़ोन की सुविधाएं बहाल कर दी गयी हैं.

    लगभग 250 लोग जो अब भी हिरासत में हैं उन्हें कश्मीर से बाहर की जेलों में बंदी बनाया गया है.

    रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि 300 से अधिक लोगों को जन सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है, जिसके अंतर्गत बिना किसी सुनवाई के 2 साल तक इन्हें हिरासत में रखा जा सकता है.

    आगरा सेंट्रल जेल में कैद अपने बेटे से मिलने का इंतज़ार करते एक कश्मीरी पिता (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    वर्षों तक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भारतीय अधिकारियों पर कश्मीरियों के शारीरिक व यौन शोषण का आरोप लगाया है. भारतीय सरकार इन बातों को अलगाववादियों द्वारा फैलाये गए झूठ कह कर नकारती रही है.

    भारत के हालिया कदम के बाद से ही कश्मीर घाटी में, जहाँ पहले ही लोग भारतीय सैन्य बलों की उपस्थिति से नाराज़ हैं और खुल कर बागियों का समर्थन करते हैं, स्थिति और बिगड़ गयी है.

    आगरा सेंट्रल जेल में क़ैद अपने बेटे आसिफ अशरफ से मिलने आए मोहम्मद अशरफ मलिक, मुलाक़ात के लिए अनुमति पत्र दिखाते हुए (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    हमीदा याद करती हैं कि कैसे 5 अगस्त की सुबह सुरक्षा बल उनके बेटे को, जिसका नाम वह सैन्य बलों के डर से नहीं बताना चाहतीं, घर से उठा कर ले गए और श्रीनगर जेल में बंद कर दिया.
    “वे ज़बरदस्ती उसके कमरे में घुसे और बिस्तर से घसीटते हुए ले गए”, उन्होंने बताया.

    हमीदा के अगले 10 दिन श्रीनगर की विभिन्न जेलों के चक्कर काटने में बीते, जहाँ वह अपने बेटे को खोजती रहीं. वे पाकिस्तानी सीमा से सटे दूर उत्तरी इलाकों में भी गयीं लेकिन उन्हें अपने बेटे का कोई पता न चला.

    फिर एक दिन खबर आई.

    एक अनजान व्यक्ति ने उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें खबर दी.

    उनका बेटा आगरा में कैद था.

    “मैंने आज से पहले इस शहर का नाम भी नहीं सुना था. अगर ये लोग मेरे साथ न होते तो मैं इस बड़े से शहर में गुम हो जाती” उन्होंने उन कश्मीरी परिवारों की ओर इशारा करते हुए कहा जो वहां अपने परिजनों से मिलने का इंतज़ार कर रहे थे.

    आगरा सेंट्रल जेल में क़ैद अपने बेटे से मिलने आए मोहम्मद अशरफ मलिक. उनके घायल बेटे को अगस्त में अस्पताल से गिरफ्तार किया गया था और फिर श्रीनगर से आगरा ले जाया गया (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    ए.पी. द्वारा किये गए साक्षात्कारों में कश्मीरी परिवारों ने 5 अगस्त को हुई गिरफ्तारियों और उसके बाद अपने परिजनों को खोजने में हुई मुश्किलों की दास्ताँ बयान की.

    गौहर मल्ला ने बताया कि अपनी बहन के पति से मिलने के लिए कश्मीर से आगरा आने में उन्हें लगभग 70,000 रु. का खर्चा आया, ये पैसे उन्होंने लोगों से उधार लिए.

    “उन्हें देख कर मुझे सब कुछ मिल गया, मुझे इसकी परवाह नहीं है कि मैं कितने कर्जे में हूँ”, गौहर ने कहा.

    उनके जीजा, आमिर परवेज राथर को पुलिस ने 6 अगस्त को गिरफ्तार किया था. कश्मीर के विभिन्न जेलों में कई दिन तक बंदी रखने के बाद उन्हें आगरा जेल भेज दिया गया. परिवार वाले इन 48 दिनों में उन्हें पहली बार देख रहे थे.

    आमिर की पत्नी, मरयम रसूल ने बताया कि कैसे जेल में अत्यधिक गर्मी व उमस होने के कारण उनके पति की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था.

    मरयम अपने 5 वर्षीय बेटे को पास खींचती हुई बोलीं, “मैंने उन से लिपट कर खूब रोई. गर्मी के कारण उनका चेहरा सूज गया है. अगर उन्हें रिहा नहीं किया गया तो वे ज्यादा दिन नहीं बचेंगे”.
    “हम दमन में जी रहे हैं” मरयम ने कहा.

    20 सितम्बर को अपने परिजनों से मिलकर आगरा सेन्ट्रल जेल से निकलते हुए कश्मीरी (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    आगरा की जेलों के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल संजीव त्रिपाठी ने आगरा में बंद कश्मीरियों के बारे में कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया.

    त्रिपाठी ने कहा “सरकार द्वारा मुझे मीडिया को कोई भी जानकारी देने की सख्त मनाही है”.

    अधिकारियों के डर से परिवार वाले मुलाक़ात के बाद ही जेल से निकल जाते हैं और ज़्यादा देर वहां नहीं रुकते.

    एक व्यक्ति ने बताया कि जेल में तैनात पुलिस वालों ने उसे किसी से भी इस बारे में बात करने से मना किया है, क्योंकि उनके प्रियजनों के सिर पर तलवार लटक रही है.

    आगरा सेंट्रल जेल में कैद अपने बेटे को मिलने वेटिंग रूम में इंतज़ार करती एक माँ को सांत्वना देते उनके पति (फोटो क्रेडिट- अल्ताफ क़ादरी/ए.पी. फोटो)

    जेल की दीवार से लगी एक मटमैली संकरी गली जो चिंतित परिवारों को लाती ले जाती गाड़ियों से भरी थी, वहां दक्षिणी शोपियां जिले के मोहम्मद अशरफ मलिक जेल के कागज़ात की फोटोकॉपी करवाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे थे.

    उन्होंने कहा कि पिछले मार्च में हो रहे प्रदर्शन के दौरान उनके बेटे असद अशरफ को पेट में तीन गोलियां लगी थीं, वो अब तक उस ज़ख्म से उबर नहीं पाया है.

    अगस्त में पुलिस ने उसे दोबारा गिरफ्तार कर लिया और आगरा जेल ले आई.

    मलिक ने बताया कि बड़ी मुश्किलों के बाद वे अपने बेटे से मिल पाए.

    उन्होंने बताया, “पुलिस वाले उसे अस्पताल के बिस्तर से उठा कर ले गए, जहाँ उसका इलाज चल रहा था. कई बार गिरफ्तार करने के बाद उसे यहाँ (आगरा) ले आये.”

    “दुनिया में कौन सा देश है जो उस इंसान को गिरफ्तार करता है जो बीमार हो और जो गोलियों के ज़ख्म से उबर रहा हो?”

    (एसोसिएटेड प्रेस (ए.पी.) के लिए शेख़ सालिक़ की यह रिपोर्ट 20 सितम्बर 2019 को ‘ए.पी. न्यूज़‘ पर छपी थी. इसका हिंदी अनुवाद कश्मीर खबर ने किया है. शेख़ साल़िक की अनुमति के बाद हमने इसे ए.पी. से साभार प्रकाशित किया है.)

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