सैकड़ों ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो जामिया नगर और यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाकों जैसे बाटला हाउस, जाकिर नगर, शाहीन बाग़ ओखला विहार, सुखदेव विहार, सराय जुलेना इत्यादि जगहों में किराए के मकानों में रहते हैं.
अतुल आनंद
मैं जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोध का छात्र हूँ और यूनिवर्सिटी का एक गैर-मुस्लिम छात्र हूँ. मैं संविधान में भरोसा रखता हूँ और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कैंपस में हुए शातिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों में शामिल रहा हूँ. कैंपस में 13 दिसंबर और खासकर 15 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने स्टूडेंट्स पर जो बर्बरता दिखाई, उसने मुझे गहरे तक प्रभावित किया है. यह बात अब सब जानते हैं कि 15 दिसंबर को बसों में आगजनी की जो घटना हुई थी वह कैंपस से करीब 2 किलोमीटर दूर न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में हुई थी. पुलिस ने जिस तरह कैंपस में घुसकर लाइब्रेरी में तोड़फोड़ की और स्टूडेंट्स को बुरी तरह से मारा-पीटा उससे यही पता चलता है कि पुलिस को यह सब करने के लिए बस एक बहाने की तलाश थी.
मैं कैपस से करीब 2 किमी दूर जामिया नगर इलाके में रहता हूँ. सैकड़ों ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो जामिया नगर और यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाकों जैसे बाटला हाउस, जाकिर नगर, शाहीन बाग़ ओखला विहार, सुखदेव विहार, सराय जुलेना इत्यादि जगहों में किराए के मकानों में रहते हैं. जब यह अफवाहें फैलाई जा रही थी कि कैंपस के विरोध-प्रदर्शन में “बाहरी लोग” शामिल थे, तब अफवाह फ़ैलाने वाले यह बात भूल गए थे कि इस यूनिवर्सिटी के आधे से अधिक स्टूडेंट्स कैंपस से बाहर रहते हैं. यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में बमुश्किल 3 हजार स्टूडेंट्स रहते होंगे जबकि यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 14 हजार से ऊपर है. एक छात्र ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि विरोध को तोड़ने के लिए और लोगों को बांटने के लिए “अंदर-बाहर” की बात की जा रही है. जामिया में कानून की पढाई करने वाले इस छात्र ने बताया, “नागरिकता संशोधन कानून संविधान और धर्म-निरपेक्षता पर हमला है तो जाहिर है सभी लोग इसके बचाव में आएंगे”. स्टूडेंट्स के अलावा जामिया इलाके में पूर्व-स्टूडेंट्स और यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोग भी रहते हैं. इलाके में कई दुकानें और बिजनेस जामिया के पूर्व-स्टूडेंट्स ही चलाते हैं. जामिया इलाके में मकानों का किराया दिल्ली के कई इलाकों से ज्यादा सस्ता है. इसके पीछे एक वजह इस इलाके को एक मुस्लिम इलाके के तौर पर देखा जाना हो सकता है. हालांकि, इस इलाके में हर जाति और धर्म के लोगों को उनके आय के मुताबिक मकान मिल जाता है. एक कथित मुस्लिम इलाके में उन्हें हिन्दू होने की वजह से भेद-भाव का सामना नहीं करना पड़ता है.
जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी (जेसीसी) कैंपस में हो रहे विरोध-प्रदर्शन का संचालन और समन्वय कर रही है. यह कमिटी 15 दिसंबर को कैंपस पर पुलिस के हमले के बाद स्टूडेंट्स ने बनायी है. इस कमिटी में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), स्टूडेंट इस्लामिक आर्गेनाइजेशन (एसआईओ), दायर-इ-शौक स्टूडेंट्स चार्टर, जामिया स्टूडेंट्स फोरम (जेएसएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया (सीएफआई), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई), जामिया का एलुमनाई एसोसिएशन और वैसे स्टूडेंट्स भी शामिल हैं जो किसी छात्र संगठन से नहीं हैं. कैंपस में सक्रिय इन छात्र संगठनों का आपस में मतभेद हुआ करता था लेकिन पुलिस बर्बरता के बाद वे आपसी मतभेद को एक तरफ कर साथ आए. यह कमिटी रोज सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक कैंपस में हो रहे शांतिपूर्ण विरोध की देखरेख करती है. गेट नंबर 7 के पास सड़क को वन-वे बना कर लोगों के बैठने और खड़े होने के लिए जगह का इंतजाम किया जाता है, विरोध में शामिल होने वाले लोगों के लिए खाने और चाय का इंतजाम भी रहता है, और शाम में स्टूडेंट्स और स्थानीय लोग मिलकर जगह को साफ भी करते हैं. इन सभी कामों में जामिया के आसपास रहने वाले लोग और समुदायों का योगदान भी रहता है.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अरबी साहित्य में पीएचडी कर रहे छात्र राजी अनवर 15 दिसंबर को हुए लाठी चार्ज में घायल हुए थे. वह मूलतः उत्तर बिहार से है और जामिया नगर में किराए के मकान में रहते हैं. वह जामिया में चल रहे विरोध-प्रदर्शन में रोजाना आ रहे हैं. प्रोटेस्ट में वह अपने साथ एक आदमकद पोस्टर रखते है जिसके सबसे ऊपर आंबेडकर की तस्वीर है और पोस्टर पर “संविधान बचाओ, सीएए हटाओ” जैसे स्लोगन लिखे हैं. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर वह कहते है, “इस कानून से सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, किसान, मजदुर और आम जनता का नुकसान होगा. यह कानून संविधान-विरोधी है”. राजी अनवर और जामिया के सैकड़ों स्टूडेंट्स के लिए यह विरोध-प्रदर्शन संविधान को बचाने की लड़ाई है. वह इस कानून को नोटबंदी के बरक्स देखते है, “जैसे नोटबंदी के वक्त गरीब परेशान हुआ था वैसा ही इस कानून से भी होगा. अडानी-अंबानी को कोई परेशानी नहीं होगी.”
जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी की सदस्य और यूनिवर्सिटी में हिंदी की स्टूडेंट चंदा यादव बताती हैं, “यह मुद्दा सिर्फ मुसलमानों का नहीं है, अगर देश में एनआरसी लागू हुआ तो दलित, आदिवासी, पिछड़े, महिलाओं और एलजीबीटी लोगों को लाइन में खड़ा होना पड़ेगा”. चंदा यादव आइसा संगठन से जुड़ी हुई हैं और जामिया नगर इलाके में रहती हैं. कमिटी के सदस्य बताते हैं कि कमिटी में विभिन्न धर्म, संस्कृति और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के लोगों का प्रतिनिधित्व है. मुस्लिम माइनॉरिटी यूनिवर्सिटी होने की वजह से जाहिर है कि इन विरोध-प्रदर्शनों में मुस्लिम छात्रों की भागीदारी ज्यादा रहेगी. जब कैंपस में पुलिस ने स्टूडेंट्स को पीटा था तो उनमें घायल हुए कुछ स्टूडेंट्स गैर-मुस्लिम भी थे लेकिन अधिकांश मुस्लिम थे. पहले भी भाजपा सरकार इस यूनिवर्सिटी को निशाना बनाते रही है, इसके माइनॉरिटी स्टेटस को छीनने की चर्चा भी हुई है. ऐसा लगता है कि पुलिस ने भाजपा सरकार के इन पूर्वाग्रहों पर अमल किया है.
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